धारा के साथ लुढ़कना,
और लुढ़ककर गोल हो जाना,
पत्थरों की खूबी है,
मछलियों की नहीं।
मछलियों को मंजूर नहीं,
चिकना और गोल हो जाना,
इसलिए वे चुनती हैं चढ़ाई,
धारा के विपरीत,
तब तक चढ़ती हैं,
जब तक सांस चलती है,
जिंदादिली उनकी चढ़ाई में नहीं,
उनके हौसलों में है,
जो मुठभेड़ करती है,
सबको बहा ले जाने वाली धारा से ,
सबको सागर की तलछट बना देने वाली धारा से,
इन मछलियों ने ही सिखाया है,
मुठभेड़ करना,
हर उस बात से, विचार से, व्यवहार से,
जो नकारता है अपने आगे सबका अस्तित्व,
जो खारिज करता है मानव मस्तिष्क की विविधता,
तय करना चाहता है सबके लिए एक जैसी दिशा।
-ऋषि कुमार सिंह
और लुढ़ककर गोल हो जाना,
पत्थरों की खूबी है,
मछलियों की नहीं।
मछलियों को मंजूर नहीं,
चिकना और गोल हो जाना,
इसलिए वे चुनती हैं चढ़ाई,
धारा के विपरीत,
तब तक चढ़ती हैं,
जब तक सांस चलती है,
जिंदादिली उनकी चढ़ाई में नहीं,
उनके हौसलों में है,
जो मुठभेड़ करती है,
सबको बहा ले जाने वाली धारा से ,
सबको सागर की तलछट बना देने वाली धारा से,
इन मछलियों ने ही सिखाया है,
मुठभेड़ करना,
हर उस बात से, विचार से, व्यवहार से,
जो नकारता है अपने आगे सबका अस्तित्व,
जो खारिज करता है मानव मस्तिष्क की विविधता,
तय करना चाहता है सबके लिए एक जैसी दिशा।
-ऋषि कुमार सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें