ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शनिवार, मई 07, 2016

सवाल

अगर मान लिया जाए कि बड़े-बूढ़े,
जो कहते हैं सही कहते हैं,
तब मानना पड़ेगा,
कि बादल जमीन के बहुत नजदीक था,
बुढ़िया के कूबड़ से टकराता था,
बुढ़िया आजिज थी,
गुस्साकर एक दिन बढ़नी मारी थी,
तब से आसमान ऊपर ही है,
फिर कभी नीचे नहीं आया
यह घर में सबसे बड़ी बूढ़ी दादी की बात थी
तब ये भी मानना पड़ेगा
कि बरतन जूठे हो जाते हैं
गैर सवर्णों को खाना खिलाने से
इस कदर जूठे कि
चाहे जितना राख रगड़ो
आग में तपाओ
लेकिन साफ नहीं होते
कई थाली-गिलास
चौपालों की ताखों में धूल खाते थे
घर के बरतनों में कभी मिलाए नहीं जाते थे
यह घर में सबसे बड़ी बूढ़ी दादी के जज्बात थे
ये तो मानना ही मानना पड़ेगा
जब हवा एकदम ठप पड़ जाए
गर्मी और उमस बर्दाश्त से बाहर हो जाए
तब पीपर के पत्ते गिनने चाहिए
हवा बहने लगती है
जितनी तेज पत्ता गिनेंगे
उतनी तेज हवा बहेगी
बाबा ने कई बार अजमाकर दिखाया था
यह बहुत अजमाया हुआ वैज्ञानिक नुस्खा था
अगर सवाल न उठे होते
तो आसमान की धुंध कभी साबित न हुई होती
चौपालों की ताखों में बर्तन पड़े रहते
बयार न चलने पर बिजली का इंतजार नहीं
पीपर के पत्ते गिनने का काम हो रहा होता।
-ऋषि कुमार सिंह

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