ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शनिवार, मई 07, 2016

किसान

जब ये सारे किसान मर जाएंगे
और कुछ मरे हुए बच जाएंगे
तब आलीशान कब्रिस्तानों के बाद भी
बची रह जाएगी ढेर सारी जमीन
छोटे-छोटे टुकड़ों में नहीं
बड़े-बड़े आकारों में होगी जमीन
अमेरिकी फॉर्म हाउस की तरह
फिर कंपनियां करेंगी खेती
इजराइल जैसी वैज्ञानिक खेती
खेतों में दौड़ेगे रोबोट
रोबोट बोएंगे बीज
पौधे उगेंगे एक सीध
दानों की होगी एक नाप
और धीरे-धीरे जैसे कब्रिस्तान में
गलेंगी किसानों की हड्डियां
बढ़ने लगेगी धरती की उर्वरता
जब किसानों की हड्डियां
पूरी तरह गल जाएंगी
तब और लहलहाएगी विकास की खेती,
लोगों को याद आएगी पुरखों की बात,
वाहवाही करेंगे सब
देंगे उन्हें दाद
जिन्होंने बताया है कि
डीहवा पर होत है अच्छी खेती,
एकदम हरेर, करिया-करिया।
-ऋषि कुमार सिंह

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