साभार,नई पीड़ी
प्राक्टर ने कहा-छात्रों को मुर्गा बनाना हमारे नियम मे हैं। पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब छात्रों को मुर्गा बनाकर दंड बैठक करवाने की नई प्रथा शुरू हो गई है। यह काम कोई सीनियर छात्र नहीं बल्कि विश्वविद्यालय के प्राक्टर के निर्देश पर अंजाम हो रहा है। २८ अगस्त को यहां के प्राक्टर ने कुछ छात्रों को परिचय पत्र न होने की वजह से पहले कमरे में बंद रखा और बाद में परिसर में उन्हें मुर्गा बनवाकर दंड बैठक लगवाई। एक छात्र जिसके घुटने में चोट थी, उसे जमीन पर लिटा कर जमीन चाटने को कहा गया। इस सब के बाद इलाहाबाद के मानवाधिकार संगठन और जनसंगठन के लोग जब सक्रिय हुए तो मीडिया ने इस मामले में जनकारी लेने की कोशिश की। जनसत्ता के इलाहाबाद स्थित संवाददाता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने जब प्राक्टर से बात की तो प्राक्टर जटाशंकर त्रिपाठी ने कहा-छात्रों को विश्वविद्यालय परिसर में मुर्गा बनाना हमारे नियम कायदों में आता है। गौरतलब है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय है और यहां का माहौल अन्य विश्वविद्यालयों के मुकाबले काफी बेहतर माना जता है। इस विश्वविद्यालय ने देश को दर्जनों राजनेता, बुद्धिजीवी, पत्रकार और वकील दिए हैं। यहां पर छात्र आंदोलनों की एक लंबी परंपरा रही है और लोकतांत्रिक हक के लिए यहां के छात्र कई बार सड़क पर उतर चुके हैं। ऐसे में प्राक्टर का यह व्यवहार सभी के लिए चौकाने वाला था। इसके बाद जब संवाददाता ने कुलपति प्रोफेसर आर जी हर्षे से इस बारे में बातचीत करनी चाही तो पहले तो उन्होंने इस तरह की घटना से ही इंकार कर दिया। लेकिन उन्हें जब व्यौरा दिया गया तो उत्तेजित होकर बोले-किसी पत्रकार की क्या हैसियत जो मुझसे बात करे। मैं राज्यपाल का प्रतिनिधि हूं और तुम्हारे खिलाफ एफआईआर भी करा सकता हूं। सामन्य जानकारी के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति राज्यपाल नहीं बल्कि राष्ट्रपति के नुमाईंदे होते हैं। इसके बाद कर्नलगंज थाने में राघवेन्द्र प्रताप सिंह के खिलाफ प्राक्टर की तरफ से मामला भी दर्ज करा दिया गया। इस मुद्दे को लेकर इलाहाबाद और लखनऊ दोनों जगह मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने तीखा विरोध किया है। इंडियन फेडरेशन आफ वर्किग जर्नलिस्ट ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए प्राक्टर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अध्यक्ष सिद्धार्थ कल्हंस ने कहा-यह विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही है। विश्वविद्यालय के प्राक्टर ने एक तरफ अमानवीय तरीके से छात्रों को परेशान किया और बाद में पत्रकार को फर्जी मामले में फसाने की कोशिश की है। यह मामला अगर तुरंत वापस नहीं लिया जता तो हम इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे। दूसरी तरफ इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष के के राय और लाल बहादुर सिंह ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया है और इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन के दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। जबकि पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज ने भुक्तभोगी छात्रों और प्रत्यक्षदर्शियों ने मिलकर उनके बयान की सीडी बनाई है। जिसे वह केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, मानवाधिकार आयोग और यूजीसी के सामने पेश करेगा। पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव शाहनवाज आलम ने कहा-जनसत्ता के संवाददाता पर से तत्काल मुकदमा वापस हो नहीं तो पीयूसीएल और अन्य जनसंगठन मिलकर इसे अदालत में चुनौती देंगे। शाहनवाज के मुताबिक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हिमांशु राय जिन्होंने इसी साल स्नातक की परीक्षा पास की है, वे शुक्रवार को बारह बजे माइग्रेशन निकलवाने विश्वविद्यालय आए थे। हिमांशु जैसे ही माइग्रेसन फार्म लेने काउंटर पर पहुंचे ,इसी बीच उसके साथ पत्राचार माध्यम से sनत्कोत्र करने की जनकारी लेने विश्वविद्यालय आए धनंजय को कुलानुशासक जटाशंकर त्रिपाठी के साथ रहने वाले सुरक्षाकर्मियों ने उठाकर बगल में खड़ी टेरा गाड़ी में ठूंस दिया जहां पहले से ही कुछ छात्र बंधक बने हुए थे। इसके बाद उन सभी छात्रों को गाड़ी से कुलानुशासक कार्यालय ले जया गया। जहां उन सभी को दो घंटों तक बंधक बनाये रखा गया। इस बीच सुरक्षाकर्मी उन्हें गालियां देते हुए लगातार धमका रहे थे कि जेल भेज दिया जयेगा। उसके बाद उन्हें सार्वजनिक स्थान पर सजा दी गयी।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
रविवार, अगस्त 30, 2009
विश्वविद्यालय प्रशासन की रैगिंग...जानकारी मांगने पर पत्रकार से पूछा क्या है तुम्हारी हैसियत
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