ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शनिवार, जुलाई 18, 2009

शहर की लालबत्ती

दिल्ली पुलिस जून के पहले हफ्ते को पैदल यात्री सुरक्षा सप्ताह के रूप में मनाया । इस बावत विज्ञापन जारी करके पैदल यात्रियों और वाहनचालकों को जागरुक करने का प्रयास भी किया। लेकिन दिल्ली पुलिस के प्रयास का कोई मतलब नहीं निकलता दिखाई नहीं दिया क्योंकि यातायात के ढ़ांचागत विकास में पैदल चलने वालों की सुविधा का ध्यान ही नहीं रखा जा रहा है। दिल्ली शहर की बात करें तो इसके कई हिस्सों को रेड लाइट फ्री यानी लाल बत्ती मुक्त बनाया जा रहा है। गौरतलब है कि रेड लाइट(लाल बत्ती) का किसी शहर से बहुत पुराना तो नहीं लेकिन आज के संदर्भ में लगभग अनिवार्य सा नाता है। कुछेक कस्बाई शहरों को छोड़ दें तो शायद ही कोई शहर हो जहां रेड लाइट(लाल बत्ती) न मिले। इससे एक ओर ट्रैफिक की गति और दिशा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है तो दूसरी ओर इसके सहारे लगी जेब्रा कॉसिंग पैदल यात्रियों सड़क पार करने में सहूलियत देती है।
सड़कों से रेड लाइट हटते ही जेब्रा क्रासिंग का गायब होना स्वाभाविक है। ऐसा कम ही मुमकिन है कि सरकार पैदल चलने वालों के लिए चौराहों से इतर रेड लाइट और जेब्रा क्रॉसिंग की व्यवस्था करे। ऐसी सूरत में पैदल यात्रियों के लिए सड़क पार करना आसान नहीं रह जाएगा। मान लिया जाये कि जगह-जगह पर पैदलयात्रियों के लिए अंडरपास या ओवर ब्रिज बना दिए जाऐंगे। लेकिन इस ढांचे से वे पैदल यात्री खुद ब खुद बाहर हो जाऐंगे जो सीढ़ियां चढ़ने और उतरने में असमर्थ हैं। ऐसे लोगों में बूढ़े, बच्चे, विकलांग, मरीज और गर्भवती महिलाएं शामिल हैं। यह अलग बात है कि सरकारें सड़कों को रेड लाइट मुक्त करने के साथ ही सड़कों पर पैदल चलने पर रोक लगा दें। जैसे आईआईटी गेट के पास रिंग रोड और डीएनडी फ्लाई वे पर रिक्शे और बैलगाड़ियों के चलने पर रोक लगी हुई है।
बेहतर यातायात व्यवस्था उद्देश्य कम समय में सुरक्षित यात्रा है। इसके साथ यह भी देखना जरुरी है कि कहीं समय कम करने के चक्कर में कोई और समस्या तो नहीं पैदा हो रही हैं। उदाहरण के लिए एम्स का फ्लाईओवर अपने जरूरत और बनावट के लिहाज से काफी सफल माना जाता है। लेकिन किसी पैदल यात्री को रिंग रोड के सफदरजंग अस्पताल से एम्स बस स्टाप के बीच की दूरी तय करनी पड़े तो उसके पास दो विकल्प होते हैं। एक, वह बस से फ्लाई ओवर पार करे और दूसरा, वह सफदरजंग और एम्स अस्पताल को जोड़ने वाले सब वे का इस्तेमाल करे। यह दोनों ही विकल्प पैसे और समय के लिहाज से पैदल यात्री के हित में कतई नहीं हैं।
जहां-जहां रेड लाइट नहीं है या फिर फ्लाई ओवर बने हुए हैं,वहां पर अनियंत्रित रफ्तार का नजारा आम है। मई के आखिरी सप्ताह में चिराग दिल्ली इलाके में तेज रफ्तार कार ने दो ऑटो को टक्कर मारकर चार लोगों की जान ले ली थी। इस इलाके रेड लाइट की व्यवस्था ठीक-ठाक है। प्रश्न उठता है कि रेड लाइट होने के बावजूद तेज रफ्तार के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की कोई कमी नहीं है,तो रेड लाइट हटाए जाने के बाद कैसी स्थिति बनेगी। गौरतलब है कि दिल्ली-नोएडा और दिल्ली-गुड़गांव को जोड़ने के लिए फ्लाई वे और एक्सप्रेस वे जैसे निर्माण रेड लाइट मुक्त हैं। यहां पर आपसी भिड़ंत और अधिक रफ्तार के कारण गाड़ी पलटने की दुर्घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। मई के आखिरी सप्ताह में नोएडा एक्सप्रेस वे पर हुई दुर्घटना में एक साथ दर्जन भर से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसमें एक सब इंसपेक्टर और दो होमगार्ड शामिल थे,जो एस्सप्रेस वे पर खराब हुई किसी ट्राली को हटवा रहे थे। क्या रेड लाइट हटने के बाद दिल्ली के भीतर इस तरह की घटनाओं में बढ़ोत्तरी नहीं होगी। दिल्ली के भीतर ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था कितनी लचर है,इसका अंदाजा बाहरी दिल्ली के किसी भी चौराहे पर पहुंचकर आसानी से लगाया जा सकता है।
दिल्ली में रेड लाइट(लालबत्ती) के विकल्प के बतौर शहर को फ्लाई ओवर से पाटा जा रहा है। अन्दरूनी और बाहरी,दोनों रिंग रोड पर अब तक दर्जन के आस-पास फ्लाईओवर बनाए जा चुके हैं या बनाए जा रहे हैं। इसके जरिए इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा और कॉमनवेल्थ खेलों के लिए बनाए जा रहे खेल गांव जाने में लगने वाले समय को घटाकर मात्र दस मिनट कर देने की योजना है। गौरतलब है कि इस इलाके के सभी मौजूदा फ्लाईओवर जाम की समस्या के शिकार हैं। खासकर भीतरी रिंगरोड पर एम्स और सराय काले खां बस अड्डे के बीच पड़ने वाले फ्लाईओवरों पर घण्टे-घण्टे भर जाम लगना लगभग रोज की कहानी है।
गाड़ियों को लेन में न चलाने,गलत पार्किंग या किसी गाड़ी के खराब हो जाने या फिर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ से जाम की समस्या पैदा होती है। बेहतर सिग्नल व्यवस्था को लागू करके समय को काफी घटाया जा सकता है। इसके अलावा पीक टाइम में दिल्ली में घुसने वाले वाहनों को नियंत्रित करने के साथ ही ट्रैफिक मोड़ने (डायवर्ट) करने की व्यवस्था भी कारगर रहेगी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करते हुए लोगों को कम से कम निजी वाहन के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। जहां तक दस मिनट में सड़क के रास्ते हवाईअड्डे से खेल गांव पहुंचने की बात है तो इसे सनक माना जाना चाहिए। अगर रेड लाइट पर लगने वाले समय और सफर के समय को जोड़ लिया जाए तो कुल समय हर हाल में घण्टे-घण्टे भर के जाम से कम ही ठहरेगा। इस बात को केवल क्षेत्र या समस्या विशेष के संदर्भ में ही जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि यह राजनीति के स्तर पर की जा रही नीतिगत हेराफेरी है। जिसका मकसद आम आदमी को,जो आजादी के 60 साल बाद भी उतना ही आम है जितना आजादी के पहले था, उसके हक से बेदखल कर देना है।

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