ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, दिसंबर 31, 2008

“कैसे कहूं मुबारक”

हमने सूरज को उगते देखा है,
हमने शाम भी देखी है,
जो कहते हैं शाम भली थी,
हमने वो रात भी देखी है।
भूख से रोते,
रो रो कर सोते,
बच्चों की लालच देखी है.....
जो कहते हैं शाम भली थी,हमने वो रात भी देखी है।
धुंए उड़ाते छल्ले बनाते,
अधबुझी बीड़ी में,
पेट की हालत देखी है....
जो कहते हैं शाम भली थी,हमने वो रात भी देखी है।
बैल चलाते हलवाहों की,
सुबह की ठिठुरन,
और टिक-टिक में,
देश की हालत देखी है.....
जो कहते हैं शाम भली थी,हमने वो रात भी देखी है।
संसद में नोटों की गर्मी,
और नेताओं की बेशर्मी,
सिंगूर-कंधमाल की लपटों में,
लुटते अरमानों की आहट देखी है.....
जो कहते हैं शाम भली थी,हमने वो रात भी देखी है।

इसलिए नए साल की बधाइयां 2010 में। जब 2009 पिछले साल 2008 जैसा नहीं होगा.....
ऋषि कुमार सिंह

3 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छी और सच्ची रचना...
आप को भी नव वर्ष की शुभ कामनाएं...
नीरज

PANKAJ UPADHYAY ने कहा…

felling ful and bleding poem .for top to bottam .

बेनामी ने कहा…

i salute your peom and hope 2009 will bring happiness and prosperity to nation; wish you happy new year