ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

रविवार, नवंबर 23, 2008

एक सुधी ब्लॉगर ने टिप्पणी के जरिए कई प्रश्न पूछे हैं...

मैं जवाब देने की कोशिश कर रहा हूं....
1.पहले प्रश्न का जवाब है कि आरोपी सध्वी प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट किया ही नहीं गया है। इसका खण्डन एटीएस प्रमुख कर चुके हैं। इसलिए खबरों से जुड़े रहना जरूरी हो जाता है।
2.हमने कभी नहीं कहा कि एटीएस की सारी कहानी सही ही होगी...बल्कि यह अब की शंका को सही साबित करती है कि जिन विस्फोटों की जिम्मेदारी बिना सोचे समझे समुदाय विशेष के असंतोष से जोड़ दिया जाता था..उसका यह भी पक्ष हो सकता था। जिसे हर बार पुलिस अपनी बायसनेस के कारण नजरंदाज कर देती थी...एक बार किसी पिटी पिटाई थ्यौरी से हटकर सोचा गया है तो तार सेना के साथ साथ बड़े धर्म गुरूओं के आश्रमों तक जा पहुंची है। साध्वी प्रज्ञा के साथ सहानुभूति की लहर देखिये कि जब से एटीएस ने उसे गिरफ्तार किया है,सारे साधु-संत अपनी छद्मता छोड़ कर सामने आ गए हैं...चीख चीख कर कह रहे हैं कि हिन्दू हिंसक नहीं हो सकता है..जबकि महात्मा गांधी को गोली मारने वाला हिंदू था....खास बात कि समझौता एक्सप्रेस विस्फोटों की जिम्मेदारी हूजी जैसे संगठनों पर डालकर अमन चैन बिगाड़ने का आरोप लगा दिया गया था...उससे भी इन दक्षिण पंथियों के नाम जुड़ने लगे हैं।
अगर नांदेड़ 2006 के विस्फोट की सही से जांच कर ली गई होती तो माले गांव का विस्फोट नहीं हुआ होता...
रही बात हिन्दू आतंकवाद कहने की तो यह बात हिन्दुत्ववादी मीडिया कह रहा है,न कि मानवाधिकार संगठन...यह वही मीडिया है आरोपी प्रज्ञा को अभी साध्वी जैसे विशेषणों से नवाजे जा रहा है,जबकि इसी मीडिया ने आजमगढ़ को आतंक की फैक्टरी और हर दाढ़ी टोपी वाले को आतंकी घोषित कर दिया था।...
3.जिस चैनल ने हिन्दू आतंकवाद शब्द को चलाया था दरअसल उसने बड़ी दूर की कौड़ी खेली है....उसने हिन्दू आतंकवाद कहकर मुस्लिम आतंकवाद कहने का भारतीय संस्करण तैयार कर लिया है....साथ में जगह भी। इससे पहले कहा जाने वाला इस्लामिक आतंकवाद विदेशों से जुड़े होने का भाव रखता था...देशी जनता को निशाने पर लेने में परेशानी होती थी....
रही एटीएस के कामों पर संदेह की बात तो यह कहा जा सकता है कि इनके खिलाफ सबूत पहले से मिल गए हों जिन्हें 6 राज्यों में हो रहे चुनावों में लाभ के लिए बचा कर रखा गया हो। दक्षिण पंथी राजनीतिक दलों को मात देने की साजिश के चलते देरी को लेकर संदेह किया जा सकता है। रही मानवाधिकार हनन की तो गिरफ्तारी के तरीके से ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जिसको लेकर मुख्य विपक्षी दल का नेता प्रधानमंत्री से संपर्क कर रहा हो,उसके मानवाधिकार के हनन की बात कम ही बनती है।.....................जवाब और सफाई को लेकर अपने अपने विचार हो सकते हैं....

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ये जवाब है, सफ़ाई है, आपका निजी विश्लेषण है या फ़िर कुछ और???

Unknown ने कहा…

यह जवाब कम सफाई ज्यादा लगती है.

संजय बेंगाणी ने कहा…

सवाल भी साथ में देते तो समझने में आसानी रहती.