साध्वी प्रज्ञा पर लगे आरोपों को लेकर मानवाधिकार संगठनों पर आरोप लगाए जाने लगे कि इनके लिए आवाज क्यों नहीं उठा रहे हैं। बात सही है लेकिन मानवाधिकार संगठनों को किसी समुदाय के साथ खड़ा क्यों समझा जा रहा है। अभी तक इन गिरफ्तारियों में मानवाधिकार हनन की शिकायत सामने नहीं है। जबकि पहली बार ऐसा हुआ है कि विस्फोटों में किसी समुदाय को निशाना बनाने से आगे बढ़कर अपराधियों को ढूंढ़ा जा रहा है। यह बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि इससे पहले जब भी कहीं विस्फोट होता,पुलिस किसी संगठन का नाम सहजता से उछाल देती और फिर उसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन से जोड़ देती। पुलिस अपनी इसी कल्पना को साकार करने के निर्दोषों को उठाना शुरू कर देती है। विस्फोट मंदिर में हो या मस्जिद में या गुरूद्वारे में...मरने वाली आबादी देश की जनता है,लेकिन उठाए जाने वाले लोगों के बारे में एक खास पहचान और समुदाय पहले से तय है। इन्हीं तयशुदा जानकारियों के तहत सारी गिफ्तारियां इतनी आनन फानन की जाती हैं कि इन गिरफ्तारियों पर शंका करना हर हाल में लाजमी हो जाता है। हालिया विस्फोटों के जितने लोगों को निशाना बनाया गया है पुलिस के पास उनके लिए सबूत जुटाने में बेहद मुश्किलें आ रही हैं। यही कारण है कि सबूतों को लेकर आवाज उठाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाने पर लिया जाने लगा है।
जबकि दक्षिणपंथी पर शक करने के आधार पहले से मौजूद थे। 2006 के नांदेड ब्लास्ट और 2004 के जालना ब्लास्ट में दक्षिण पंथियों के हाथ होने के सबूत के बावजूद उन्हें संदेह का लाभ दिया गया। जिसके बाद की कई घटनाओं में इनकी भागीदारी को भी नजरंदाज कर जांच को आगे बढ़ाया गया। ।(13 नवंबर)दैनिक भास्कर में पहले पेज पर खबर है कि समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में पुरोहित के संबंधों की जांच की जाएगी(PTI )New angles continue to emerge in the probe with ATS now looking into possibility of Lt Col Shrikant Purohit, arrested in Malegaon blast case, being involved in the twin blasts in
the Samjhauta Express train linking India and Pakistan that had left 68 people dead.। जांच करने वाले अधिकारियों के माइंड सेट की बात करें तो इसके बारे में निजी अनुभव है। एक गुमशुदगी के संबंध में बातचीत करने पर पहला प्रश्न होता था कि हिंदू है या मुसलमान। बात व्यवस्था के सांप्रदायिक हो जाने का है। समाज की सांप्रदायिकता उतना नुकसान नहीं कर सकती जितनी कि व्यवस्था के सांप्रदायिक होने का। इसका उदाहरण गोधरा बाद के गुजरात दंगे हैं। जिसका दर्द कई पीढ़ियों को सिसकने के लिए मजबूर कर चुका है....। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का मकसद कतई नहीं हो सकता कि वह कानून को अपना काम करने से रोके। लेकिन उसका काम यह जरूर है कि अपराध के सफाए के नाम पर नागरिकों का उत्पीड़न न होने दे ।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
kuch prasna puchne hai?
1-sadhvi pragya ka chaar baar narko test kyo,jabki valiulaah ya abu basar jaiso ka ek baar bhi nahi......
2-abhi tak ATS KI karyavahiya me sandeh lagta tha aachanak unpe itna visvaas kyo?
3-aap log aatankvaad ko dharma se jodne ke khilaaf the ,to hindu aatankvaad jaisa naamkaran kyo?...
matra do ghatana ke aadhar par dasinpanth ka itna haua kya.....
jahir hai tatha kathi manvadhikaar karyakarta matra lokpriya hone ke karan keval alpasankhako ka mudda uthate hai...
sadhvi pragya thakur ke manavaadikaro ki charcha na karna unki niyat batata hai...
एक टिप्पणी भेजें