बम पटाखों की तरह छुड़ाए जाने लगे हैं..
न निकलो घर से बाहर
लोग सरेआम उठाए जाने लगे हैं...
कल तक सही था कि कुत्ते,
चोरों पर भूंकते हैं..
लेकिन अब तो घर वालों को ही काट खाने लगे हैं....
दिखता न हो भले ही,
इंसानों का मरना...
लेकिन लोकतंत्र से लोग हटाए जाने लगे हैं...
जब से सरकारें करने लगी हैं गिरोहगिरी...
संविधान के शब्द भी सुस्ताने लगे हैं....
ऋषि कुमार सिंह
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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1 टिप्पणी:
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
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