अगरतला में पांच धमाके होते हैं। दो की मौत और 30 लोग घायल हो जाते हैं। पूरी खबर बड़ी धैर्य और सावधानी के साथ हिन्दी इलेक्ट्रानिक मीडिया में आती है। अगर यह विस्फोट अगर गोबर पट्टी में हुआ होता तो रिपोर्टर सहित एंकर पानी पी-पीकर चीख रहे होते। चौकाने वाला पहलू है कि किसी भी 24 गुना 7 चैनल ने इस पर आधे घण्टे से ज्यादा एयर टाइम नहीं दिया जाता है। इससे गैर-हिन्दी भाषी क्षेत्रों को लेकर पूर्वाग्रह सामने आ जाता है।
राष्ट्रीय होने की सच्चाई है कि सोमालिया में हुए जहाज अपहरण की घटना केवल हेडलाईन के तौर पर लिया गया,जबकि इसमें भारत के 18 नागरिकों की जिन्दगी फंसी है। वहीं टाइम्स नाऊ जैसे अंग्रेजी चैनल ने परिवारों बातों को सामने लाकर अच्छा काम किया है।
अहमदाबाद धमाके के बाद से ५० से अधिक लड़कों की गिरफ्तारी और मास्टर माइंड की पुलिसिया सीरीज के बीच (1 अक्टूबर,स्रोत-पीटीआई)मध्य प्रदेश में गुलाब सिंह(रींवा,मध्प्रदेश) के घर से 325 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट की बरामदगी हुई। इस खबर को चैनलों के साथ-साथ अखबार ने कानपुर में बम बनाते दो बजरंगियों के मारे जाने की तरह ही दबा लिया। पुलिस की महानता देखिये,चूंकि गुलाब सिंह का कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं पाया गया,इसलिए केवल मिसहैंडलिंग मामला दर्ज किया गया। अब प्रश्न है कि क्या गुलाब सिंह के नाम की जगह रकीब, सलीम, उमर, तनवीर जैसा कोई नाम होता तो क्या पुलिस और हिन्दी मीडिया इसी तरह व्यवहार करता । आतंकवाद पर अब तक की रिपोर्टिंग से सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है। हिन्दी मीडिया में कहने और प्रश्नों को पैदा करने की जिम्मेदारी में तेजी से गिरावट आयी है। गुब्बारा बेंचने वाले बच्चे को मानव बन कह दिया जाना अपने आप में एक सबूत है।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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3 टिप्पणियां:
सही मंथन किया है।
सटीक विवेचना की है आपने।पैनी नज़र बनाये रखिये।
bandhuon pahli baar aaya hoon.idhar jitni prshansa karoon kam hai.
apun jo kahne se darte hain.urdu naam hai na bhai.bahut dino tak kumar ka puchhalla bhi lagaye raha.lekin dekha k kuch kar loon.main to paakistaani hoon.
main apne yahaan aapke blog ka link de raha hoon.
gar ap bhi de saken to praspar sahyog bana rahe.
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