लखनऊ में चारबाग रेलवे स्टेशन पर एसटीएफ 23 अक्टूबर की रात से अति सक्रिय हो जाती है। उसका पहला शिकार कैफियत ट्रेन में आजमगढ़ से सफर कर रहे दो युवक बनते हैं। जिनसे चारबाग स्टेशन पर पूछताछ की जाती है। हालांकि मानवाधिकार संगठनों तक बात पहुंच जाने के कारण एसटीएफ उन्हें नहीं उठा पाती है। और 24 तारीख की सुबह 10 बजे के आस पास पीयूएचआर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को एसटीएफ अपना दूसरा शिकार बनाती है। जिन्हें 80 घण्टे से ज्यादा समय के बाद आलमबाग थाने की जालसाजी के मामले में जिला अदालत में पेश करती है। इन पर सोने के नकली दाने बेंचने का आरोप में आईपीसी की धारा 419 और 420 का मुकदमा दर्ज किया जाता है। परिजनों को इनके गिरफ्तार होने की जानकारी सरकारी वकील के जरिए अदालत में पेश(28तारीख शाम 4.30) करने से ऐन पहले दी जाती है। जबकि गिरफ्तारी 27 तारीख की रात 10.30 पर दिखाई जाती है। इन गिरफ्तार लोगों दो सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता विनोद यादव और सरफराज प्रमुख हैं। विनोद यादव खुद एक गैर सरकारी संगठन कारवां के अध्यक्ष भी है। जबकि इनके छोटे भाई राजीव यादव पेशे से पत्रकार हैं और मानवाधिकार संगठन से जुडें हैं। विनोद यादव और सरफराज को अन्य पांच लोगों को लखनऊ जिला अदालत ने 10 दस दिन की न्यायिक हिरारत में भेज दिया है। पिछले कुछ दिनों से राजीव, शहनवाज,लक्ष्मण और विजय की रिपोर्टिंग से एसटीएफ को फर्जी गिरफ्तारियां करने में काफी मुश्किलें पेश आने लगी थी। एसटीएफ ने अपनी इसी परेशानी से निजात पाने के परिजनों को तंग करने का काम शुरू कर दिया। ऐसा कहने के पीछे तर्क है कि जब 24 तारीख की रात को चार लोगों के गुमशुदकी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी,तो जब 27 तारीख की रात को जब गिरफ्तारी होती है तो परिजनों को क्यों नहीं बताया जाता है। 24 तारीख की रात से आजमगढ़ और लखनऊ के अधिकारियों से लगातार संपर्क में रहने के वावजूद उनकी तरफ से कोई संतोषजनक कदम न उठाए जाने के पीछे क्या कारण थे..एसटीएफ के कामकाज से जुड़ी यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले लखनऊ और बनारस कचहरी ब्लास्ट के बाद बने माहौल में एसटीएफ ने ऐसी दर्जनों गिरफ्तारियां की थी,जिनके खिलाफ किसी भी तरीके से सुराग जुटाने में समस्या आ रही है। जबकि गिरफ्तारी के समय इन्हें मास्टर माइंड तक कहा था। इन छूटे हुए लोगों में राजू बंगाली एक मास्टर माइंड है,जिसे अदालत ने बरी कर दिया है। बनारस के संकटमोचन मंदिर विस्फोट में जिस एक को अदालत ने सजा दी है,उसके खिलाफ सबूतों में पुलिस की गवाही को साक्ष्य माना गया है।
यह केवल यूपी में ही नहीं हो रहा है,बल्कि आतंकवाद से निपटने के नाम पर सैकड़ों लोगों को संदेह के आधार पर हिरासत में लिया जा रहा है। यह राज्य प्रायोजित आतंक का नया दौर है जिसमें समुदाय विशेष और मानवाधिकारों के पैरोकार निशाने पर हैं। हालांकि मालेगांव विस्फोट में दक्षिणपंथियों का नाम आने से पुलिस और एसटीएफ के सामने नई मुश्किलें पैदा हो गई हैं। जबकि इसके पहले जांच में कुछ नाम और पहचान के लोगों की पुलिस की तलाश रहती थी। खासकर मदरसों में पढ़ने वाले युवा,जिन्हें पुलिस अपराधी मानकर ही पेश आती थी। मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार राजीव यादव,शहनवाज और लक्ष्मण ने काफी समय से फोन टेप किए जाने का आरोप लगाया है। इन लोगों का मानना है कि एसटीएफ फोन टेप करके सबूत जुटाने की कोशिश कर रही है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के जेल से छूटने के बातें और साफ हो सकेंगी। बहरहाल विशेषाधिकार संपन्न बलों के जरिए हो रहे मानवाधिकार हनन चिंता का विषय है। यूपी में जिस तरह के सरकारी आतंक फैलाने में इन विशेषाधिकार बलों की भूमिका आयी है,उससे इन्हें भंग किए जाने की जरूरत सामने आ गई है। सच्चाई और भय मुक्त माहौल विकसित करने के लिए इन बलों को समाप्त किया जाना चाहिए....इसके आप सभी का समर्थन आवश्यक है....ऋषि कुमार सिंह.....09911848941
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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