सत्ता की चाकरी कर रही मीडिया को हम सब कोसते हैं, लेकिन कभी भी उससे अलग होकर नही बल्कि उसी में रह कर ये सब कहते है , है किसी में इतनी हिम्मत जो उसे छोड़ कर दिखाए । बड़ी आसानी से हम उसे मजबूरी का नाम दे देते हैं । कहते हैं क्या करे भाई !!!! पेट भी तो पलना है । यहाँ जमना है तो अच्चयों को भी लिख डालिए ।
मानती हूँ की मीडिया ने ऐसी शक्ल ले ली है की हर वक़्त पहचानना मुश्किल हो जाता है । सिर्फ़ कमियों को उजागर करना बड़ा आसन काम है ,लेकिन खूबियाँ भी गिनाना चाहिय ,नए विकल्प सुझाने चाहिए ,ताकि एक नई दिशा मिले ।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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