ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
शुक्रवार, अगस्त 08, 2008
गलत को गलत ही कहा जाएगा.....
आपको क्यो लगा कि आलोचना से सुधार नही आता है....जबकि आलोचना का मतलब तो कमियों को दिखाना होता है ताकि उसमे काम करने वालों को पता लग सके कि दूसरे क्या सोचते हैं इसके अलावा आलोचना करने वाला ख़ुद के लिए भी नई मर्यादाएं तय करता ......अपनी आलोचना को सामने रख कर ही काम करता है ,क्या यह सुधार नही है.......................इसी लिए सजग आलोचना जरूरी है ......
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
सही कहा आपने
आलोचना करते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये, जैसे कि १) यदि पहले से उस तथ्य पर किसी और ने कड़ी आलोचना कर दी हो, तो निंदा करने से बचें, २) आलोचना करते समय यह ज़रूर बतायें कि कहां कमी है, ३) वह कमी दूर करने का उपाय बतायें, और आखिरकार, ४) कुछ समय बाद जायजा लें कि आलोचना का कुछ प्रभाव पड़ा कि नहीं।
सही कहा.
lakin kabhi kabhi ye aalochana jaatigat aur aap ko jaan bujhe kar neecha dikhne ke liye ki jati hai. yasa hee ik wakya apne he shapthi ke sath ho raha hai. aur wo bichara apni naukri tak chdne ki baat kar raha hai. uske boss ne use itna pareshan kar diya hai ki waha office jane se pahele kaai baar sochta hai. salle asie alochko ki maki..........
aalochna
aalochna ke do artha hote hai,sakaratmak aur nakaratmat.sakaratmak aalochna sadav vikash karti hai parantu nakaratmak aalochana heen bhavna paida karti hai jisse rachnatmakta par praticool prabhav parta hai.....so intension is always important.
एक टिप्पणी भेजें