ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

मंगलवार, जून 10, 2008

मैं तो मजाक कर रहा था....

तुम उससे बात करते हो ......
तुमने बुरा तो नही माना .....
अरे भाई मैं तो मजाक कर रहा था ........
ये बातें मुझे मेरे एक मित्र से सुनने को मिली जो की अभी बोम्बे मे जर्नलिस्ट हैं...दरअसल वे किसी लडकी के बारे मे मुझ पर आरोप लगा रहे थे कि मैं उससे बातें करता हूँ .जब की सच तो यह है किमैं उस लडकी को जनता ही नही हूँ ...वो तो orkut पर मजाकिया लहजे मे एक स्क्रेप कर दिया था .....बात यह नही कि उसने मुझ से पूछा बल्कि यह कि उसने मजाक के लहजे मे आरोप लगा दिया...अपने सामन्य जीवन मे ऐसे बहुत मौके आते हैं जब लोग मजाक के लहजे मे बडी बडी बातें कह जातें है .....मेरा अपना मानना है कि अगर किसी को कोई बात कहने कि जरूरत आ पडी है तो उसे सीधे क्यों नही कहना चाहिए ....क्यों मजाक का सहारा लेना पड़ता है............भाई जर्नलिस्ट होने का क्या फायदा....जब अपनी बात कहने के लिए मजाक का सहारा लेना पडे.....

कोई टिप्पणी नहीं: