ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
रविवार, मई 25, 2008
मेरे दोस्त अनुराग का ब्लॉग और मेरी प्रतिक्रिया......
आज मैंने अनु का ब्लॉग पढा । पहले स्पष्टकर दू कि अनु क्यों । क्यों कि प्यार झलकाना चाहता हूँ । अच्छा लिखा और बडी बेबाकी से लिखा जो शायद कही गुम हो गया था आई आई ऍम सी मे नवम्बर के बाद । कारण तो नही बताऊंगा लेकिन इशारे से समझिए कि बहुत व्यस्त हो गए थे। काफी जुझारू थे शुरूआती दौर मे हर रविवार को हम साथ साथ घूमने जाया करते थे। हमने सोचा था कि दिल्ही कि सारी जानकारी ले डालेंगे लेकिन भाई ऐसा उलझे कि मुझे ही बेटा कह के पुकारने लगे। अब शायद फ्री हुए है तब कि व्यस्तता से। यही कारण है कि ब्लॉग मे सबकी पोल खोलने पर तुल गए है । खेर छोरिये ये सब ......... । अच्छा है मेरे पर अभी तक कुछ क्यों नही लिखा । देखते हैं कि कब मेरा नम्बर आता है । बस इतना है कि हम कभी साथ थे तो आज इतने दूर कि यादें भी तन्हा नजर आती है ।शहर एक होने के वावजूद हम कभी मिल नही पाते हैं उन दोस्तों से जो अभी इसी शहर मे है । अनुराग को उनकी लेखनी की बेबाकी के लिए एक बार फ़िर बधाई।
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