ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
शनिवार, मई 24, 2008
विज्ञापन और ब्लॉग ........
अब काफी दिनों से लगने लगा है की ब्लॉग कोई जिम्मेदारी का काम नही बल्कि उभार लेता हुआ बिजनेस है। लगभग वैसा ही जैसा कि आजकल अन्य मीडियाके साथ हो रहा है। यानि यहाँ भी विज्ञापनों से लाभ कमाने की एक दौड़ शुरू होगी जिसमे वही लिखा या दिखाया जाएगा जो की बिक सके । यानि व्यक्ति के व्यक्तिव से अलग उसे तडक भडक बनाया जाएगा ताकि लोग पढे । लोग क्या पढे यह भी तय किया जाने लगेगा किहम लोगों को क्या पढाना चाहते हैं। जैसा कि आज का मीडिया करता है। काम करते हुए यह तो मुझे पता है कि यहाँ काम करने वाले लोग नही तय करते कीक्या दिखाया जाएगा बल्कि यह तय करने वाला कोई और नही बाज़ार है। डर है की कही ब्लॉग पर भी यही बाज़ार हावी न हो जाए। आगे की कहानी के लिए इंतजार करना ही पडेगा।
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