ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

मंगलवार, मई 13, 2008

जयपुर ब्लास्ट और सरकार

आज नौ बजे के पास अचानक खबर आई की जयपुर मे ब्लास्ट हो गया है। खबर की पुष्टि रिपोर्टर से हुई। तस्वीरे दिल को दहलाने वाली आई.मैं सोचने लगा कि इसे अंजाम चाहे जिस ने और जिस मकसद से दिया हो लेकिन मारे गए लोगों का क्या थाऔर जब नौ जगहों पर आतंकी अपना काम कर रहे थे तो उस समय प्रशासन क्या कर रहा था। इस घटना ने एक बहस उठा दी कि राज्य आपने नागरिकों को सुरक्छा क्यों नही दे पा रहा है। विदेशी खतरों के नाम पर करोडों खर्च करने वाली सरकार आन्तरिक सुरक्छा पर कितना ध्यान दे रही है। केवल पुलिसों को आधुनिक हथियार देने से समस्या सुलझा लेने का दावा खोखला ही साबित होता है। इस घटना के बाद एक प्रतिक्रिया होगी जो कि किसी तरह से खास तौर पर एक सम्प्रदाय को जिम्मेदार ठहराना चाहेगी। लेकिन ऐसे समय मे शासकों और जनता दोनों को ध्यान रखना होगा कि देश सभी का है । भले ही किसी को निशाना बनाकर सरकार अपनी जिम्मे दारी से मुक्त हो जाए लेकिन ऐसा पहली बार नही हुआ है कि इस तरह के ब्लास्तों के बाद आपधापी मे जिनको गिरफ्तार किया जाता है वे वेकसूर होते है जैसा कि उतर प्रदेश कचहरी सीरियल ब्लास्ट मे पकडा गया राजू बंगाली निर्दोष था । लेकिन इसके बाद गिरफ्तार किए गए ऐसे बहुत से लोग है जिनकी सिनाख्त राजू ने कि थी लेकिन उन्हें अभीतक नही छोड़ा गया है। सरकार को सावधानी रखनी होगी कि इस दुर्घटना के बाद इसकी जांच पुलिसिया अंदाज मे न हो.बेकसूरों को मरने का आरोप बेकसूरों पर न लगे। सजा उन्ही को हो जो अपराधी हैं।मानवा अधिकार कि समझ भी रखनी होगी जैसा कि अक्सर पुलिस भूल जाती है।

1 टिप्पणी:

विजय प्रताप ने कहा…

आपने बात बिल्कुल सही कही है. मैं यहाँ राजस्थान में हूँ और इन सच्चाइयों को जयादा करीब से देख पा रहा हूँ.जयपुर विस्फोट की और जानकारी के मी मेरा ब्लॉग पढ़ें