ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

सोमवार, मई 12, 2008

डिस्कवरी देखता हूँ ..............तो

मैं जब भी डिस्कवरी चैनल देखता हूँ मन जाने किस उलझन मे भर जाता हूँ। आख़िर इस चैनल दिखाना क्या चाहता ...क्या यह प्रूफ करना चाहता है कि नेचर ही अन्याय या मत्स्य न्याय का प्रस्तोता है। यह चैनल देखकर लगता है नाहक किसी को अपराध के बुरा भला कहते हैं प्रकृति ने ही तो सबको सिखा दिया है। यह चैनल जैसे किसी विशेष तरह का सिध्हांत पैदा कर रहा हो। कुछ उस तह का जिसमे एक गला कट प्रतियोगिता हो केवल जीवन बचने के लिए ....कुछ कुछ आज के बाजारवाद मे जीने जैसी .....जहाँ अगर जीना है तो सामने वाले पर वार करना होगा...अपनी चमकती जिन्दगी के लिए हजारों को अँधेरा देना होगा ......जैसा कि अमेरिका आपने लिए करता है ...उसके आयुध कारखाने चलते रहे इसके लिए वह युद्ध कर सकता है..आपने हितों के लिए किसी भी देश के रास्त्र अध्यक्ष को मरवा भी सकता है। दरअसल यह ऐसी कवायद है जहाँ मानवता को केवल जीवन जीने के पर नाम पर कुर्बान किया जा रहा है।.................................
ताकि लूट की किसी भी तरीके को इसके आधार पर तार्किक बनाया जा सके । यह हर आदमी के मन मे डर पैदा कर देना चाहता है कि मारो वरना मार दिए जाओगे ......यह इस चैनल कि साईन ऑफ़ लाईन है....प्रख्यात सामजिक कार्यकर्ता अनिल चम्डिया के शब्दों मे यह एक परियोजना के तहत हो रहा है...जिसमे लूट का दर्शन तैयार किया जा रहा है । यानि लोगों की संवेदनाओं को कुंद किया जा रहा है.......लोगो की सोच पर हमला करके उन्हें यह अहसास दिला देना
मरने मे ही भला है इसलिय सिर्फ़ आपने हितों की सोचो ......दोसरो को मरने दो .....

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