ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, मार्च 26, 2008

अब किस मौसम की आस लगाए

आज एक बार मैं हारा । अपनी गलती समझ मे क्यों नही आती है । कहाँ कमी रह जा रही है । क्या मैं सिर्फ़ बोलने या भौकने मे उस्ताद हूँ । किसी बात पर बैलेस नही रह पा रहा । कल तक प्रिंट मे काम करना चाहता था आज तो कहीभी कोई भी नौकरी करने की नौबत आ गयी है। exam मे नम्बर नही आए तो मैकाले को गाली दे ली ,अब कहीं सेलेक्शन नही हो रहा है तो किसे गाली दूँ । जाहिर सी बात अपनी कमियों को कब तक दोसरों के सर डालता रहूँगा । कभी तो कडे कदम लेना ही होगा । सपने देखना भी छोड़ना होगा । क्यों की सबसे ज्यादा दुःख तो यही पहुचाते हैं । देखते हैं कि कब तक वक्त का मिजाज़ ऐसा ही रहता है। लोग दिलासा देते हैं मैं उनका शुक्रगुज़र हूँ कि वे ऐसे समय मे मेरे साथ हैं जब कि अपना ही विश्वास ख़ुद से गायब होने लगा है। लोग कहते हैं कि सब अच्छा होगा तब एक ही बात याद आती है कि---
अपनी वजहें बर्बादी सुनाये तो बात मजे की है,
जिन्दगी से यूं खेले जैसे दूसरे की है।
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान घर देर है अंधेर नही है ,तो मेरा मन कह उठता है की
सब हवाएं ले गया मेरे समन्दर की कोई
मुझे किस्ती बदवानी दे गया
बदवानी किस्ती का मतलब पाल वाली नाव

1 टिप्पणी:

नई पीढ़ी ने कहा…

ab kyaya kahate ho saathi. ab to tum sahara ke ho gaye. chalo sahara pranam karo!