ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, मार्च 12, 2008

बात नही जमी यार

मेरे एक दोस्त की खोज पोरी ही हुई थी कि आरकुट पर उसकी कोम्मुनेटी दिखाई दे गयी। उस पर लिखे गए संदेश को पड़ने के बाद लगा कि वह भी बँटवारे की राजनीति शिकार हो गया है। आज के समाज की समस्या भी यही है कि हर चीजे अलग थलग दिखाई जाती है ताकि एकजुट होने के बजाय पूरा संगठन या आन्दोलन छोटे छोटे भागो मे टूट कर रह जाए । ऐसे मे समाज समझदार कहे जाने वाले लोग भी अपनी तार्किकता को नही बचा पाते और इन विभाजन कारी शक्तियों के साथ खडे हो जाते हैं। आख़िर समझ मे नही आता कि अनपढ़ और इनमे क्या अंतर माना जाए । दलित या ओ बी सी जातियो को उपवर्गों मे बाँट कर उनका वोट बैंक कीतरह ही इस्तेमाल हो सकता क्यों कि मूलतः इनमे विकास को लेकर कोई अंतर नही है,सभी को विकास की जरुरत है ।

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