ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
मंगलवार, मार्च 04, 2008
किस तरह जाल फैलाते जा रहे हैं गैर सरकारी संगठन
एन जी ओज समस्या समाधान नही हो सकते क्योकि इनको बनाने का उद्देश्य ही ऐसा नही है । ये तो किसी आन्दोलन को शुरू होने से पहले ही उसे दबा देते है। सरकारी शब्दों मे समस्या का स्थानीय स्टर पर समाधान यानि लूट को मूलतः नही बल्कि अंशत समाप्त कर देते है। सरकार इसलिए फंडिंग करती है ताकि असफलता होने पर इन्हीको दोषी बना कर बचा जा सके । आज सरकार हरेक कामों मे एन जी ओज को शामिल करती जा रही है। यानि अपनी जिम्मेदारियों से हटने की तैयारी मे ही लगी है। निजीकरण के बाद बचीकुची कसर तो अब ये गैर सरकारी संगठन पूरा कर दे रहे है । बाज़ार के पैसे से चलने वाले ये गैर सरकारी संगठन उसके लिए जगह बनाते है । अलग अलग छेत्र मे बनने वाले संगठन अपना चरित्र होता हैं और जनता के बीच जाकर विशेष तरीके की बरं फैलाते है जैसे झोला छाप डॉक्टरों का विरोध,जब कि ग्रामीण जनता की क्रय शक्ति देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह से वे जीवन जी रहे हैं और कैसे वे दिग्रीधरक कि फीस दे पाएंगे ।
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