ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008
रते रटाये ढांचें मे कसमसाते मुद्दे
आज क्लास की बहस मे हमारे एक साथी ने विकास को चेन रिअकशन बताया !जब की पिछले पचास सालों का हाल भी सामने है !आखिर प्रश्न उठता है कि आखिर ये चेन रेअच्शन दक शुरू होगा !शोध बताते हैं कि उदारीकरण के बाद गरीब और अमीर का अंतर और बढा हुआ है !विकास कुछ छेत्रो तक सीमित होकर रह गया है ! हिन्दी भाषी प्रदेशो कि खराब हालत अब तक के विकास के सभी दावों पर उगली उठाती है ! महारास्त्र मे जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे असंतुलित विकास भी एक कारन है ! लेकिन महारास्त्र मुद्दा विकास से कम कांग्रेस की घटिया राजनीत का नमूना है ! लगभग ऐसी ही राजनीत पंजाब मे हुई थी जिसका अन्तिम परिणाम आतंकवाद के रूप मे सामने आया था !समस्या यह भी वही है की आखिर चुनाव के नजदीक आते ही ऐसे बयान क्यो आते है! लोग यह मानते है कि स्थानीय अधिकारों कि लराई है ! बोम्बे मे ऐसा विरोध नया नही है ,बल ठाकरे ने भी अपनी राजनीत ऐसे ही शुरू की थी !यानि पुरानी स्ग्राब एक नये बोतल मे ,उत्तर भारतीयों का प्रवासन अन्य शहरो जैसे पश्चिम बंगाल मे भी हुआ था लेकिन वहाँ एस तरह का विरोध सफल नही हो पाया.अधिकारों की लराई मे वह के मजदूर एक साथ आ गए.अपने विरोधों को भुलाकर.लेकिन महारास्त्र मे इन्ही विरोधों पर राजनित होती रही जिससे ये मुद्दा आज भी प्रभाव रखता है। इसके अलावा मराठा का नारा देकर जिस अस्मिता को उभर जा रहा है उसमे पिछडे वेर्ग की उभरती राजनितिक भागीदारी को तोड़ने की मंशा शामिल है.अब गौर करे की आखिर महारास्त्र की सरकार का बयान और राज ठाकरे को गिरफतार करने का कम इतने देरी से क्यो हुआ.माहौल गर्म हो दो चार लोगो की जान जाए तभी तौ मुवाव्जा और सुरक्छा के नाम की राजनीत की जा सकतीहै.केवल महारास्त्र की ही नही पूरे देश की राजनीत मे यही हो रहा है.गुजरात मे जो कुछ हुआ वो सब इसी का परिणाम है.अगर राजनीत सत्ता पाने और उसे बनाये रखने का धंधा है तौ इससे बेह्टर स्थितियों की कामना गलत है.अफ़सोस होता है की भारतीय मिडिया इस छलावे की पोल खोलने के बजाय इसी मे उलझा है।
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