ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

मंगलवार, जनवरी 29, 2008

आज के समाज का सच

कहने को आज की पत्रकारिता काफी प्रगतिशील है लेकिन क्या वह अपने तर्क विकसित कर पाई है !साम्प्रदायिकता जैसे मुद्दे पर वह भी एक आम या सामान्य सोच वाले नागरिक की तरह ही बातें करती है !आज क्लास मे बहस के दौरान लोगो कि बातों मे एक पत्रकार कम ही आ पा रहा था ! भावनाये ज्यादा थी !यही कारन है कि लोग शोर ज्यादा कर रहे थे !आख़िर एक समाज मे अलग मन्य्ताये रखने वाले समूह को इतनी हिकारत क्यो ,उससे क्यो आशा कि जाती है कि वह अपनी धार्मिक मान्यता को छोर कर बहुसंख्यक के कदमो पर चलने लगे!क्या बहुसंख्यक समुदाय के सभी लोग देश भक्त है ! क्या सभी राज चिह्नों का सम्मान करते हैं ! यानी ऐसा हो जरूरी नही है ! तो फिर मुसलमानों पर आरोप क्यों

कोई टिप्पणी नहीं: