ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शनिवार, अक्तूबर 06, 2012

सांसद का धरना


        जिला प्रशासन बात नहीं सुनता है, इस शिकायत पर सत्ता पक्ष के सांसद का धरने पर बैठना हाल-फिलहाल की सबसे अनोखी घटना है। बहराइच पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सांसद बृजभूषण शरण सिंह के धरने के पीछे जनहित जितना महत्वपूर्ण कारण कहा जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश और जिले के राजनीति हालात हैं। कानून-व्यवस्था के नाम पर प्रदेश सरकार सवालों से जूझ रही है, ऐसे में सत्ता पक्ष के सांसद का धरने पर बैठना बताता है कि बहुमत के बावजूद शासन और राजनीति पर नेतृत्व की पकड़ बेहद कमजोर है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अनुभवहीनता है कि पार्टी में गुटबाजी और शासन में मनमानी देखी जा रही है। हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव के दौरान बहराइच में समाजवादी पार्टी के दो गुट बन जाने की चर्चा आम थी, जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के जीतने पर लगभग समाप्त हो गई थी।

सांसद के धरने गुटबाजी की चर्चा को फिर से हवा दे दी है। बहराइच में कैबिनेट मंत्री होने के नाते डॉ. वकार अहमद शाह की स्थिति सशक्त है, तो सांसद बृजभूषण शरण सिंह की पूरी राजनीति प्रभावकारी बने रहने के लिए जानी जाती है। जब एक ही फलक पर दो सशक्त वाताग्र मौजूद हों, तो राजनीतिक बवंडर का खड़ा होना स्वाभाविक है। बहराइच के इस बवंडर से दो जरूरी सवाल पैदा हुए हैं। पहला, क्या सत्ता पक्ष का सांसद प्रशासनिक मनमानी के सामने वाकई इतना कमजोर है कि उसे अपनी बात मनवाने के लिए धरने पर बैठना पड़ रहा है ? दूसरा, क्या एक कैबिनेट मंत्री के गृह जिले के हालात इतने खराब हैं कि सांसद तक की नहीं सुनी जा रही है ?

ध्यान रहे कि बहराइच जिले में विधानसभा चुनावों के दौरान समाजवादी पार्टी को उत्साहजनक सफलता नहीं मिली थी। सात सीटों में केवल दो सीटों से उसके प्रत्याशी जीते थे। अन्य पांच पर दो कांग्रेस, दो भाजपा और बसपा उम्मीदवार विजयी रहे थे। गुटबाजी और शक्ति-संघर्ष जारी रहने की दशा में आगामी लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए अपनी जगह बचाने की चुनौती लेकर आयेगा।

 

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