ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

सोमवार, जनवरी 17, 2011

तबाही के बाद इस बार भी बचा लिए करोड़ों रुपये, नाव के भाड़े में ही बच गए 14 लाख

साभार अमर उजाला
अशोक उपाध्याय
बहराइच। घाघरा और सरयू नदी की बाढ़ के दौरान बचाव व राहत कार्य पर बीते वर्षों में कई करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। बीते साल 17 लाख रुपए से अधिक का धन नाव के किराए पर व्यय किया गया। जबकि लोगों को भोजन मुहैया कराने व तात्कालिक सहायता के नाम पर एक करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की गई। बाढ़ पीड़ित भोजन के लिए तड़पते रहे। हर तरफ सहायता न मिलने का रोना रहा। जबकि विभिन्न संगठनों ने भी बाढ़ आपदा के दौरान लोगों की मदद की। इस बार इस मद में एक करोड़ रुपए से भी कम रकम खर्च हुई है। जबकि बाढ़ आपदा अधिक रही। कहीं आपदा के नाम पर आया यह धन बीते वर्षों घोटाले की भेंट तो नहीं चढ़ गया?
घाघरा और सरयू नदी प्रति वर्ष जिले में तबाही मचाती हैं। तीन साल से घाघरा काफी उग्र रही है। बरसात के दौरान घाघरा ने कई गांवों को अपने आगोश में ले लिया। घाघरा के जल स्तर ने वर्ष 2009-10 में कई सालों का रिकार्ड तोड़ दिया था। वर्ष 2010-11 में भी घाघरा के जल स्तर ने रिकार्ड बनाया। कई दिनों तक जल स्तर की स्थिति यथावत रही। कई गांव बाढ़ की चपेट में रहे। ग्रामीणों को घर से बाहर निकलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आदमपुर-रेवली तटबंध पर दो साल से खतरा मंडरा रहा था। इस साल इसे बचा लिया गया। जबकि गोंडा का तटबंध टूट गया।
तात्कालिक सहायता और भोजन के नाम पर वर्ष 2007-08 में 121.32 लाख, वर्ष 2008-09 में 118.98 लाख, 2009-10 में 346.59 लाख रुपए व्यय किए गए। जबकि वर्ष 2010-11 में 73.01 लाख रुपए ही खर्च हुए। जानकारों की मानें तो बीते वर्षों में तत्कालीन अधिकारियों ने कुछ ही स्थानों पर लंगर चलवाए।
काफी धन लंच पैकेट वितरण पर व्यय दिखाया गया। होटलों की रसीदें लगाई गईं। बाढ़ पीड़ितों को प्लास्टिक पन्नी, मोमबत्ती, माचिस व लाई वितरण पर भी व्यय किया गया। विभिन्न संगठनों ने भी बाढ़ पीड़ितों को लंच पैकेट बांटे और लंगर चलवाए। लेकिन बीते वर्षों में प्रशासन सैकड़ों बाढ़ पीड़ितों की भूख नहीं मिटा पाया।
वर्ष 2010-11 में भारी तबाही हुई। बाढ़ क्षेत्र में कई स्थानों पर प्रशासन ने लंगर चलवाए। कई स्थानों पर टेंट लगवाए गए। जिसमें बाढ़ पीड़ितों ने शरण ली। इसके बावजूद प्रशासनिक अमले ने आवश्यकता की वस्तुएं बाढ़ पीड़ितों को पहुंचाई। हायतौबा भी कम मची। मकानों की क्षति के मद में 2007-08 में 154.83 लाख, 2008-09 में 508.18 लाख, 2009-10 में 261.42 लाख व 2010-11 में 59.78 लाख रुपए की राहत दी गई। बाढ़ क्षेत्र में फंसे लोगों को सुरक्षित ठिकाने पर लाने के लिए 2007-08 में 11.71 लाख, 2008-09 में 08.72 लाख, 2009-10 में 17.56 लाख खर्च किए गए। जबकि 2010-11 में 7.4 लाख रुपए ही व्यय हुए। सवाल उठ रहे हैं कि तात्कालिक सहायता के नाम पर बीते वर्षों की अपेक्षा 50 लाख से 2.5 करोड़
रुपए तक अधिक कैसे खर्च हो गए? इतना धन खर्च होने के बाद बाढ़ पीड़ितों तक राहत भी नहीं पहुंची। फिर यह धन खर्च कहां हुआ।

मामला विधानसभा में उठाएंगे
महसी विधायक सुरेश्वर सिंह ने कहा कि वर्ष 2009-10 में बाढ़ के समय तत्कालीन जिलाधिकारी से उन्होंने सवाल किया था कि बाढ़ पीड़ितों के लिए भोजन कहां बन रहा है? जिस पर उन्होंने ग्राम प्रधानों व अन्य लोगों की ओर से भोजन बनवाकर वितरण की बात कही थी। यह भी कहा था कि इन लोगों को राशन नहीं दिया गया है। फिर 3 करोड़ 46 लाख रुपए कहां खर्च हो गए? जबकि इस साल जगह जगह भोजन बनवाया गया। निश्चित तौर पर तत्कालीन जिलाधिकारियों की ओर से फर्जी बिल बाउचर लगाकर भुगतान लिया गया। विधानसभा में वह इस मुद्दे को उठाएंगे। उन्होंने कहा कि जिले में बाढ़ आपदा एक बड़ा मुद्दा है।

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