साथियों,
जनवादीपन की कीमत पर कांग्रेस के एंटी कम्युनल फ़ोर्स के अध्यक्ष बने पुराने वामपंथी इतिहासकार अम्बरेश मिश्र जल्द ही कांग्रेसी नेतावों को आजमगढ़ का दौरा करने जा रहे हैं. कई मुठभेड़ों को अंजाम दे चुकी यह कांग्रेसी सरकार अम्बरेश मिश्र को आगे कर अब आजमगढ़ के लोगों के बीच छवि सुधारना चाहती है. अम्बरेश के आजमगढ़ जाने से पहले एक अपील
पुराने वामपंथी (अबके) कांग्रेसी अंबरेश कल तुम आजमगढ़ के लोगों की संवेदना को मापने आ (न जाने कौन सा थर्मामीटर ला) रहे हो। ज्यादा दिन नहीं हुए जब तुम्हारी सरकार ने आजमगढ़ के कई युवाओं को आतंकवादी बताकर जहां-तहां (न जाने कहां-कहां) फर्जी मुठभेड़ों में मार गिराया। हमारे दो चार नहीं सौ-पचास लड़के अभी भी देश भर की जेलों में सड़ रहे हैं। न जाने कितनों को तुम्हारी खुफिया एजेंसियां अगले मुठभेड़ों में मार गिराने के लिए गायब कर रखी हैं। उनके मां-बाप को भी यह पता नहीं कि उनका बेटा कहां है, जेल में है या बाहर है, जिंदा है या मार दिया गया। वह हर मुठभेड़ के बाद यह देखते हैं कहीं हमारा बेटा तो नहीं मार दिया गया। अब जब यह मामला कुछ शांत हुआ है, तुम अपने कांग्रेसी कुनबे को घुमाने के लिए यहां की रैकी करने आ रहे हो। अंबरेश मिश्रा तुम इन लड़कों के घर कांग्रेसी पर्यटकों को ले जाकर उनके दर्द का आनंद उठाना चाहते हैं।
अंबरेश तुम बेशर्म कांग्रेसी नेताओं को आजमगढ़ में क्या दिखाना चाहते हो - क्या यह कहोगे कि देखो इसके बेटा, इसके बाप, इसके पति या इसके भाई को हमारे देश के बहादुर पुलिस जवानों ने मार गिराया है। क्या यह कहकर हंसोगे कि - कल तक हम इन्हें आतंकवादी मानकर डर रहे थे, ये तो डरपोक निकले। अंबरेश, तुमने वामपंथी से, यूडीएफ, उलेमा कांउसिल तक चोला बदल-बदलकर इनके दर्दों को भुनाया है (कितना पैसा कमाया है? ) । अब तो तुम सत्ताधारी दल में हो अब क्या चाहते हो?
अंबरे। मिश्र हम सभी आपको बहुत पहले से जानते हैं, तब से जब की आप वामपंथ का मुखौटा लगाए रहते थे। तब अपने एक मानवाधिकार नेता सत्येन्द्र सिंह से 1857 पर फिल्म बनाने के लिए पैसा उधार लेकर भाग गए थे। शायद तुमको पता हो सत्येन्द्र सिंह ने अपनी जमीन बेचकर वह पैसा दिया था। तुमने 1857 के शहीदों के साथ भी गद्दारी की (मतलब की आदत पुरानी है)। तुम्हारी फिल्म का तो पता नहीं लेकिन तुमने 1857 पर किताब लिखकर एक दंगाई लालकृश्ण आडवाणी से उसका विमोचन कराया।
हमें यह भी याद है कि तुम ने वामपंथी चोला उतारने के बाद यूडीएफ के रास्ते कांग्रेस तक का सफर तय किया। जिस दिन तुम कांग्रेस के एंटी कम्यूनल फोर्स के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे, उसी दिन तुम्हारे हत्यारे ससुर आर के शर्मा, पत्रकार शिवानी भटनागर हत्याकांड से बरी होकर जेल से बाहर आए थे। यह कोई संयोग नहीं था , अम्बरेश। यह तुम्हारे जनवादी तेवर की कीमत थी। अब वैसी ही कोई कीमत आजमगढ़ के सैकड़ों पीड़ित परिजनों के आंसूओं की भी लगा रहे हैं ना तुम।
अंबरेश तुम आजमगढ़ उन्हीं बेशर्म कांग्रेसी पर्यटकों को लाना चाहते हो ना, जिसकी पार्टी को कुछ दिनों पहले बाटला हाउस मुठभेड़ कांड व हेमंत करकरे की हत्या का दोशी ठहराया था। बतला हॉउस कांड में मारे गए आतिफ और साजिद के घर तुम घडियाली आंसू बहाने जा रहे हो. लाशो का सौदा कब तक करोगे? इससे पहले भी तुम चुपके से आजमगढ़ आने की कोषिश कर रहे थे। लेकिन लोगों का आक्रोश देख तुमने अपने कदम पीछे खिंच लिए। अंबरीश मिश्र तुम ये न भुलों की हमारा आक्रोश कोई कम नहीं हुआ है। हम कल भी विरोध से तुम्हारा और कांग्रेसी पर्यटकों का स्वागत करेंगे।
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राजीव यादव,मसिहुद्दीन संजारी, शाहनवाज़ आलम, विजय प्रताप, लक्ष्मण प्रसाद, ऋषि कुमार सिंह, अवनीश राय और आजमगढ़ की अमनपसंद जनता की ओर से जारी
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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