क्या है आम आदमी
रोजाना चाहे सरकारी भाषण सुन रहे हों या किसी सरकारी योजना की जानकारी ले रहे हों, ‘आम आदमी’ का जिक्र हुए बगैर सरोकारों का अध्याय पूरा नहीं होता है। अगर ऐसी कोई सामग्री अंग्रेजी भाषा में हो, तो ‘कॉमन मैन’ का जिक्र जरूर मिल जाता है। आखिर,यह ‘आम आदमी’ यानी ‘कॉमन मैन’ है क्या ? जिसका जिक्र भारतीय राजव्यवस्था के सभी अंग और उपांग बड़ी ही शिद्दत से करते हैं। संसद से लेकर मनरेगा(नरेगा का नया नाम-महात्मागांधी जोड़ने के बाद मनरेगा) तक तैरने वाले इस ‘आम आदमी’ शब्द का प्रयोग अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी करते हैं। आम आदमी को पहचानने के संकट के बीच सूचना अधिकार कानून सहारा बन कर सामने आया। यह जानने के लिए कि प्रधानमंत्री का आम आदमी क्या है,प्रधानमंत्री कार्यालय में एक सूचना आवेदन भेजने की योजना बनायी है। जो कुछ इस प्रकार है। लोक सूचना अधिकारी,प्रधानमंत्री कार्यालय,नई दिल्ली। महोदय,मैं आपके माध्यम से सूचना अधिकार के तहत कुछ जानकारियां चाहता हूँ। पहला प्रश्न,प्रधानमंत्री महोदय के प्रधानमंत्री के रुप में पहले और दूसरे कार्यकाल में दिये गये सभी भाषणों में कुल कितनी बार ‘आम आदमी या कॉमन मैन’ का उल्लेख किया है ? दूसरा प्रश्न,भारतीय जनांकिकी का कौन सा भाग प्रधानमंत्री के आम आदमी के दायरे में आता है और कौन सा नहीं आता है ? तीसरा प्रश्न,प्रधानमंत्री महोदय आम आदमी की असल मुसीबतों के बारे में क्या राय रखते हैं ? चौथा प्रश्न,पिछले कुछ दिनों में आम आदमी की सहूलियत के लिए उपरोक्त संदर्भों में प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्रिपरिषद द्वारा क्या उपाय किये गये हैं ? पांचवां प्रश्न,दिल्ली में आटा,दाल और दूध के भाव आसमान छू रहे हैं,दिल्ली परिवहन निगम और दिल्ली मेट्रो ने अपने किराये में दोगुना से लेकर एक तिहाई तक किराये में बढ़ोत्तरी कर दी है,ऐसे में रसोई गैस की सब्सिडी को हटाये जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री महोदय क्या राय है ? छठा प्रश्न,औद्योगिक घरानों को राहत पैकेज मिलने के बावजूद मंदी के नाम पर छंटनी और वेतन कटौती से प्रभावित लोग,क्या प्रधानमंत्री महोदय की आम आदमी की संज्ञा में समाहित होते हैं ? सातवां प्रश्न,प्रधानमंत्री की टीम के सदस्य कृषि मंत्री शरद पवार के इस बयान पर कि अगली फसल आने तक खाद्यान्नों के दाम नीचे नहीं आयेंगे,आम आदमी की हिफाजत करने वाले प्रधानमंत्री की नजरों में सही है या गलत। क्या प्रधानमंत्री इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि कृषि मंत्री का बयान सीधे तौर पर कालाबाजारी को प्रोत्साहित कर सकता है ? आठवां प्रश्न, प्रचारित किया जा रहा है कि देश में इस बार फसल का उत्पादन कम हुआ है,बावजूद इसके उपभोक्ता,खाद्य एवं सार्वजनिक मंत्रालय द्वारा यह विज्ञापन क्यों जारी किया कि देश में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं है। यह विज्ञापन लगभग सभी अखबारों में प्रकाशित हुआ था,अगर विज्ञापन सही है तो खाद्यान्न की कमी का शिगूफा क्या है ? क्या इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री महोदय ने पिछले दिनों कोई बयान या आम आदमी को भरोसा दिलाने वाली कोई बात कही है। नौंवा प्रश्न,क्या प्रधानमंत्री महोदय इस बात से सहमत हैं कि आर्थिक सुधारों को तेज करने का मतलब श्रम कानूनों में ढ़िलाही की गारंटी है ? दसवां प्रश्न,उदारीकरण के बाद आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जिक्र पाने वाला ‘समाजवाद’ कितना प्रभावित हुआ है ?
नोट-आवेदन फीस के रुप में तीन दिन तक पोस्ट ऑफिस का चक्कर लगाने के बाद मिला 10 रुपये का पोस्टल ऑर्डर संलग्न कर रहा हूँ। आवेदक का नाम-आम आदमी । परिचय- मैं देश के उस इलाके से आता हूं जो हर साल बाढ़ में बह जाने के लिए मजबूर है। मेरा घर उस गांव में है जिसकी जमीन नदियों की कटान में चली गई है। मुझे बताने में संकोच नहीं है कि मैं अपनी बीबी के इलाज के लिए पुश्तैनी जमीन बेंच चुका हूँ और मजूदर बन दिल्ली कमाने चला आया हूँ। मैं बता दूं कि मैं सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुका हूँ और अब अपनी पेंशन के लिए कोर्ट लेकर अधिकारियों के चक्कर लगा रहा हूँ। मैं विधवा हूँ,जिसके पति की हवालात में मौत हो चुकी है। मैं उस बेटे/बेटी की मां हूं,जिसे फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया है। मेरा बेटा कई साल से लापता है। मेरी बेटी के साथ पुलिसवालों ने बलात्कार किया और फिर उसे मार दिया। मैं पढ़ा लिखा नौजवान था,तीन बार सरकारी नौकरी मिली और छूट गई और 18 साल से मुकदमा लड़ते हुए वयस्कता की दहलीज पार करने की तरफ चल पड़ा हूं,लेकिन अभी भी न्याय के इंतजार में हूँ। मैं कोई अकेला/अकेली नहीं हूँ,आप चाहें तो अखबारों को गौर से देख सकते हैं।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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1 टिप्पणी:
my dear brother mai aap ko thanks kahna chahta hu aapne is news ko hamlog tak pahuchaya,,,,yahi to mai bhi kabhi nahi samjh pata hu ki aajadi ke 62years ke baad bhi hamari sarkar roti kapra or makan nahi de payi...?
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