ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शनिवार, सितंबर 05, 2009

जनसत्ता,सम्पादकीय पेज पर व्यापक बदलाव के साथ

उन सभी लोगों को,जिनसे मैंने कुछ भी जाना या सीखा है,शिक्षक दिवस की बधाई।
जनसत्ता,अखबार जो फिलहाल मौजूदा अखबारों की तुलना में अपनी अच्छाइयों और कमियों को लेकर काफी जुदा है,ने शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर बदलाव किया है। यह कुल मिलाकर स्थायी बदलाव है क्योंकि जब से मैं इस अखबार से परिचित हूं,इस पृष्ठ पर कभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इस परिवर्तन के बाद सम्पादकीय पृष्ट पर सम्पादकीय की जगह बढ़ी दी गई है। इसके अलावा 'चौपाल' के लिए भी ज्यादा जगह गई है। इन दोनों कोशिशों में इस पृष्ठ से लोकप्रिय(कम से कम मेरे लिए) कॉलम मुद्दा नदारद हो गया है। इसकी कमी आज ही महसूस हो गई क्योंकि बड़े लेखों को पढ़ने में अक्सर एक उदासीनता मिलती थी,जो कि 'मुद्दा' को पढ़ते हुए नहीं महसूस होती थी। बात यह भी है 'मु्दा' जैसे कॉलम में छपी सामग्री का आशय काफी कुछ साफ रहता था। कुल मिलाकर जिसे वैचारिकी की लाइन कहते हैं,उसमें ज्यादा किलियरिटी रहती थी। खैर,बदलावों के सकारात्मक पक्ष भी हैं। अमरउजाला के ब्लॉग कोना की तर्ज पर जनसत्ता ने ब्लॉग की दुनिया से लोगों के विचारों को साभार छापने की घोषणा की है। इससे अब तक उपेक्षित और अवैधता के शिकार ब्लॉगों के अच्छे विचारों को मान्यता मिलने का बिकल्प बढ़ा है। इसका एक और भी फायदा है। ब्लॉग की दुनिया में बुहत कुछ अच्छा होने के बावजूद लोगों की पहुंच से बाहर था,जिस वजह से भी इसकी रचनात्मकता पर नकारात्मक असर था। जैसे टिप्पणियों में गम्भीर सोच-विचार की जगह फूहड़ता बरती जा रही थी। अब जब यह सम्पादकीय नजर के साथ प्रकाशित होगा तो ब्लॉग लिखने वालों और टिप्पणी करने वालों को भी सचेत करेगा कि वे ऐसा कुछ न लिखे जिसे सार्वजनिक जीवन में(बंद कमरे से बाहर) कहने-सुनने में आवाज बदलनी पड़े। साथ ही कुछेक पेशेवर टिप्पणीकारों से भी निजात मिल सकेगी।
जनसत्ता अखबार जब भी पढ़ता हूँ तो एक कमी अक्सर परेशान करती है। जैसे पेज आठ पर देखना। अब समझ में नहीं आता कि जब खबर का ब्यौरा पहले पेज पर दे दिया गया है, तो पेज आठ पर जाने की बाध्यता क्यों रखी जा रही है। कभी कभी तो केवल चार लाइन ही बाकी होती है। कुल मिलाकर अगर थोडा़ सा बदलाल पहले पेज पर किया जा तो इस समस्या से भी निजात मिल सकती है। जहांतक सम्भव हो पहले पेज पर कुछेक बड़ी खबरों को विस्तार से लिया जाये। साथ ही अन्दर के पेज की खबरों का संक्षिप्त परिचय पहले पेज पर दे दिया जाये। जिससे पूरे अखबार में क्या-क्या है,पता चल जायेगा और पाठक को पेज एक और आठ के बीच भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। हॉं,ज्यादा बड़ी खबरों को दो-तीन खंडों में तोड़कर एक-दो खंड अन्दर के पेज पर पूरा-पूरा रखा जाये। जिसकी जानकारी पहले पेज की खबर के साथ दे दी जाये। फ्रंट पेज की बॉटम स्टोरी को तो बिल्कुल ही नहीं तोड़ा जाना चाहिए क्योंकि इसे पढ़ते हुए पेज आठ पर जाकर तलाशना और पढ़ना काफी असहज लगता है।

कोई टिप्पणी नहीं: