यह चुनावी मौसम है और वादों की रिमझिम बारिश है,
भूखे-प्यासे हैं जो लोग,सब देश के दुश्मनों की साजिश है।
आंख खोल के देखो दुनिया,दिल्ली में मेट्रो दौड़ गई है,
भूख को छोड़ो और खुश हो जाओ, स्लमडॉग आस्कर जीत गई है।
आओ-आओ तुम भी देखो ऊंची मीनार कुतुब की,और लाल किले चारदीवारी,
जिससे देश का शासन चलता,भाषण करता नेता,और सुनती है जनता सारी।
संसद पहुंचो तब तुम जानो,खर्चीली राहें हैं कितनी,
घर से बाहर निकले नहीं,करते हो बातें बहुतेरी चिकनी।
न तो कोई लूट मची है,न फैली नाइंसाफी है,
साठ साल तो मांगे नहीं हैं,बस और पांच ही काफी है।
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
बहुत खूब।
नेता और कुदाल की नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं वैसा कहाँ विवेक।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत बढिया लिखा है ...
भूखे-प्यासे हैं जो लोग,सब देश के दुश्मनों की साजिश है।
-सटीक मारा!!! बेहतरीन रचना!
बहुत बढ़िया ऋषि भाई, सटीक मारा...
ये है लोकतंत्र का सागर,
भर लो पांच साल की गागर...
भर लो जनता के सपनों और अपने लाभ की गागर.
जितना हो सके उतना झूठ बोलो, नेताओं के लिए लाइफबॉए साबुन के विज्ञापन की पंच लाइन प्रासंगिक लगती है...'कोई डर नही'
एक टिप्पणी भेजें