ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, फ़रवरी 04, 2009

पुरुष,जिसने स्त्री को दासत्व से कभी मुक्त नहीं किया।

पुरुष,जिसने स्त्री को दासत्व से कभी मुक्त नहीं किया। हमेशा से परमेश्वर बन उसको छलता रहा है। मंदिरों में जगह तो दे दी,लेकिन मंदिर से बाहर बराबरी की निगाह नहीं दे पाया। हमेशा यह साबित करने में लगा रहा कि नारी का अस्तित्व पुरूष के रहमोकरम पर है। अधिकारों को देने की बात करने वाला यह पितृ सत्तात्मक समाज इतिहास के अपराध से पीड़ित है। इसने आधी आबादी को कभी सुकूंन से नहीं जीने दिया। कभी जन्म से पहले,कभी जन्म के बाद मारा। अगर बच गई तो तरह-तरह के लूटने वालों से दिन-रात की जद्दोजहद। कभी पति की बेरहमी की शिकार बनी तो कभी प्रेमी ने छला, कभी पड़ोसी ने नोंचने की कोशिश की,तो घर के नातेदारों ने भी मौके नहीं छोड़े। आलम कि जन्म देने वाले मां-बाप सौदा करते रहे और राखी के उपहार में बाजार मिले। धर्म के ठेकेदारों ने घरों की दीवारों से बाहर नहीं आने दिया,कपड़े से लेकर उठने बैठने तक की जगह तय कर दी।
ऐसे में जब चंद्र मोहन उर्फ चांद ने अनुराधा बाली उर्फ फ़िज़ा के लिए उपमुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी तो लगा कि उसने प्यार को हकीकत देने के लिए साहस का परिचय दिया है। भले ही दो महीने के बाद की सच्चाई कुछ और निकली। इसी समाज के भीतर बहुतेरे विवाहेतर सम्बन्ध संचालित होते हैं। ऐसे सम्बन्धों को दो लोगों की आपसी सहमति के बावजूद अवैध ठहराया जाता है। इन सम्बन्धों से उपजी हर नकारात्मकता के लिए महिला को जिम्मेदार माना जाता है,अपराधी मानकर प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे माहौल में चंद्रमोहन का पहला निर्णय फ़िज़ा को अवैधता की गुफा से तो बचा लेता है लेकिन उसका दूसरा निर्णय फ़िज़ा को समाज के चौराहे पर बेसहारा छोड़ देता है। जहां उसे अपराधी साबित करने वाली अदालत सज चुकी है...यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि चंद्रमोहन ने प्यार की फ़िज़ा खराब कर दी। तमाम बदलावों और हलचलों के बीच उसे दूसरे पुरूषों से जुदा समझना सिर्फ और सिर्फ भूल थी.....
पनिहारन दुखी है....

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

i share the sadness with paniharan. women will have to learn the pshycology of patriacul socity& should act against it in Gandhian way without crossing the limits of physical & moral laws. while preserving the good moral ethos,should hit on the hypocracy of existing socity. this social war can only be fought by women alone.None can help them.

के सी ने कहा…

आप जितना आसानी से फिजा को ख़राब करने का दोष चाँद पर दे रहे हैं मसला उतना आसान नहीं है चाँद सुन्दरता को भोगने को आतुर था तो फिजा सत्ता के प्रति लालायित, एक बहिन ने नवभारत टाईम्स में जो लिखा उसका आशय था चाकू खरबूजे पे या खरबूजा चाकू पे गिरे कटना तो खरबूजे को ही है मेरी उनसे सहमती नही बन पाई। ऋषि आप में संस्कार बचे है तो ऐसा कृत्य करने के बाद अपने परिजनों से नजरें मिला पाएंगे? आपका जवाब होगा नहीं फ़िर तो ये सारा खेल नंगों से नंगों की दोस्ती का है।

mera aasman ने कहा…

ऋषि जी बात में सच्चाई है, कुछ मित्रवत्त लोगों से बातचीत में उन्होंने कहा कि , बिल्कुल ठीक हुआ, फिजा जैसी औरतों का यही होना चाहिए... चन्द्रमोहन ने बिलकुल ठीक किया... बात वही है आप के ब्लॉग पर भी कुछ इसी मानसिकता के लोगों ने अपनी बात रखी है जो कहते हैं कि चाकू को खरबूजे पर रखो या खरबूजे को चाकू पर कटना तो खरबूजा ही है.. पुरुष की कमजोरी यही है कि वो खुद को चाकू मानते आए हैं ... पुरुष कैसे गलत हो सकता है? इस मानसिकता से बाहर आइए..