ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, नवंबर 26, 2008

विजय ने कुछ कहा है....

प्रिय मनिन्द्र के सवालों का जवाब
- सवाल यह नहीं की साध्वी का चार बार नार्को टेस्ट क्यों हुआ या वलीउल्लाह और अबू बशर का एक बार भी नार्को नही हुआ, हम तो पूरे नार्को टेस्ट प्रणाली के ही खिलाफ हैं. वह चाहे साध्वी का हो या अबू बशर का. जिस प्रणाली को पूरी दुनिया में खारिज किया जा चुका है उसे हमारे देश की सुरक्षा एजंसिया यूज कर रहीं हैं. सवाल उठाना है तो इस पर उठाए.
- ऐ टी एस के खिलाफ तो हम लोग पहले भी रहे हैं और अब भी हैं, कई बम धमाकों को में हम लोगों ने जिन संगठनों की संलिप्तता की संभावना जताई थी, एटिएस आज उन्हें पकड़ रही है, और रही बात विश्वाश की तो इसे सरकारी संगठन विश्वाश के लायक हो ही नही सकते, क्या पता आज चुनावो की वजह से यह क्रियाकर्म हो रहा हो और चुनाव बाद इन्हे क्लीनचिट मिल जाए?
-ऋषि ने सही कहा है की आतंकवाद को धर्म से जोड़ना तो उसी मीडिया ने शुरू किया है जो कभी मुस्लिम सम्प्रदाय को आतंक का पर्याय बताती रही है. हम इसे हिंदू आतंकवाद कत्तई नहीं मानते लेकिन संघ के लोग जो इसके जन्मदाता हैं, और उससे जुड़े बजरंग दल, वीएचपी, दुर्गा वाहिनी, अभिनव भारत जैसे संगठन इसे गर्व से मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ हिंदू आतंकवाद ही मानते है. अपने आस-पास के इसे लोगों से बात कर देखिए, क्या प्रतिक्रिया है उनकी? जो बात हम लोग पहले कहते रहे हैं वही आज वो कर रहे हैं. हमने कहा आतंकवाद के बहने पूरे मुस्लिम सम्प्रदाय पर निशाना साधा जा रहा है, हिंदूवादी संगठन भी ऐसी ही भाषा बोल रहे हैं. सवाल यह है की आतंकवाद की राजनीती से फायदा किसे पहुच रहा है, कौन इसका लाभ लेना चाहता है. क्यो कई लोकतान्त्रिक समाज को फासीवादी समाज में बदल देना चाहता है. मनिन्द्र अगर इन मुद्दों पर विचार कर रहे हो तो इस दिशा में सोचे, शायद कोई सार्थक निर्णय पर पंहुच सकेंगे.
विजय प्रताप

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