ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

शुक्रवार, सितंबर 19, 2008

स्वयंभू हो चुका है मीडिया....

भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया में कुछेक को छोड़कर बाकी चैनल अंगुलिमाल डाकू हो चुके हैं। जो रोज नए अपराध करता है और उसकी अंगुली काट कर अपने गले में लटका भी लेता है। जैसे कुछ दिन पहले एक वैज्ञानिक प्रयोग को महाप्रलय बता कर ऐसा बलवा मचाया कि लोगों,खास कर शहरी उपभोक्ता को मौत का आभास होने लगा। आखिर,मध्य प्रदेश में एक लड़की ने अपनी जान दे ही दी। वैज्ञानिक प्रयोग की विफलता की आशंका को महाप्रलय की तर्ज पर दिखाना संविधान में दर्ज मूल कर्तव्य(अनुच्छेद51-ज)का सरासर उल्लंघन है। लेकिन अपराधों में लिप्त इस अंगुलिमाल को जाने किस महात्मा बुद्ध का इन्तजार है। इसकी करतूत से तो लगता है कि यह जैसे सत्ता को दमन का आमंत्रण दे रहा हो और अपने ही इस दमन के पक्ष में माहौल भी तैयार कर रहा हो। गौरतलब है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय इन अंगुलिमाल रूपी चैनलों की मॉनीटरिंग के लिए अपनी तैयारियां बड़े जोर-शोर से कर रहा है। अरे भाई,सत्ता को कभी भी स्वतंत्र प्रेस रास नहीं आई है। और आपका व्यवहार तो स्वछंद हो चुका है। एक की देखादेखी बाकी भी भेड़िया धसान के हिस्से हो चुके हैं। इन अंगुलिमालों के साथ दिक्कत यह भी है कि ये सामने वाले को कटघरे में खड़ा कर उससे प्रश्न पूछते हैं,लेकिन अपनी कार गुजारियों को टीआरपी के चोचले से जस्टीफाई ठहराते हैं।
आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में इस्तेमाल की भाषा से इसका दिवालियापन सामने आ गया है। पूरी न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर यहीं हैं दिल्ली के कॉतिल, यही हैं दिल्ली के गुनहगार जैसे कैप्सन के जरिए अपना फैसला सुना रहा है। जिन स्केचों को दिखा कर चिल्ला रहा है,उनकी सच्चाई यह है कि संदिग्ध तीन हैं और स्केच पांच जारी किया गया है यानी कम से कम दो तो फर्जी हैं। बाकी के बारे में एक जानकारी देना चाहूंगा कि जयपुर ब्लॉस्ट में पुलिस ने अपने जारी स्केचों को वापस लिया था। क्योंकि गिरफ्तार गए लोगों से चेहरे मिलाने की चुनौती पेश आने लगी थी।...इन तर्कों पर बात करने का धैर्य इन चैनलों के पास कहां.....
इस मीडिया के लिए कवि राकेश रंजन की (अभी-अभी जन्मा कविःसंग्रह से) पंक्तियां पेश हैं...
“ हल्लो राजा!
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा!
कभी-कभी तो चिंता-भय से
गल्लो राजा!
कभी-कभी तो जठराग्नि में
जल्लो राजा !”






1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सही कह रहे हैं. कविता का अंश पसंद आया.