ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

रविवार, जुलाई 20, 2008

ये क्या हो रहा है......

एंकर के पीछे चल रहा बैक ग्राउन्ड क्या एंकर पर हावी नहीं हो जाता है...नहीं लगता कि एंकर की बात पर लोगों का ध्यान न रह कर उसके पीछे के तकनीकी इफेक्ट पर चला जाता है....सोचिए कि एक एंकर खड़ा हो और उसके पीछे बड़े-बड़े अक्षरों में ब्रेकिंग न्यूज दौड़ रहा हो या पीछे बड़े कार्टून तैर रहे हों ...तो लोगों का ध्यान स्वाभाविक रूप से उधर ही जाएगा क्योंकि एंकर जैसे सुन्दर लोग तो आस-पास देखने को मिल ही जाते हैं...... ग्राफिक्स के दमदार होने का अर्थ यह तो नहीं ही होना चाहिए कि एंकर और रिपोर्टर की कही बात ही दब जाए.....आजकल ऐसी ही हरकतें हो रही हैं....लोग खबरों को लेकर चर्चा शायद ही करतें हों लेकिन ग्राफिक्स और बी.जी. पर विशेष चर्चा होती है...जैसे...ससुराल जा रही न्यौढ़ा को घर की बड़े-बूढ़े समझाते हैं। कहें तो पत्रकारिता पर चित्रकारिता हावी हो चुकी है....भाई ...चैनलों में काम करने वाले आधुनिक जो ठहरे...........

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