ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

रविवार, जुलाई 06, 2008

किस अंधी गली में आ गए हैं............


आज जो कुछ अमर सिंह की प्रेस कान्फ्रेस में हुआ वह न तो पत्रकारिता के लिहाज से बेहतर है और न ही लोकतंत्र के । प्रश्न यह नहीं कि एक रिपोर्टर को प्रेस कान्फ्रेंस से बाहर कर दिया बल्कि असल मुद्दा तो यह है कि आखिर पत्रकारिता के पेशे में इतनी गिरावट कैसे आ गई ? कि राजनीति की विसात पर जनता को छलने वाले अवसरवादी नेताओं ने अब सीधा हमला करना शुरू कर दिया। दरअसल आज की पत्रकारिता ने अपने वजूद को खुद ही घटाया है। इस पत्रकारिता ने जिस तरह से अपने पत्रकारी मूल्यों को खोया है उसके साथ इससे बुरा और कुछ भी नहीं हो सकता है..इसने न केवल अपने उसूलों से समझौता किया बल्कि खुद को बाजारू भी बना दिया। आज जब भी कोई पत्रकार या पत्रकारिता से जुड़ा संगठन राजनीति के खोखलेपन पर उंगली उठाता है तो उससे अपने गिरेबान में झांकने को कह दिया जाता है। ये राजनेता जानते हैं कि हमारी काली करतूतों के सामना करने की खुद्दारी इन पत्रकारों के पास नहीं बची है। मीडिया संस्थानों की एक बात (शायद वे खुद न स्वीकार करें) सबसे ज्यादा दुख देने वाली है कि उसमें काम करने वाले बहुतेरे लोगों ने अपने भीतर की संवेदना को मार दिया है। वे न तो व्यापक जनहित को ध्यान रख पा रहे हैं और न ही पत्रकारीय अस्मिता को। यहां टीबी पत्रकारिता के साथ तो मुसीबत इतनी ज्यादा है कि इसे पत्रकारिता कहा जाए या नहीं। सोचने वाली बात है कि चौबीसों घण्टे खबर दिखाने की कवायद आज के चैनल क्या परोसने लगे हैं...कोई सांई की बोलती वीडियो दिखाकर कमाने में लगा है तो कोई इसका खण्डन करके। कोई कयामत को पहचानने वाली बिल्ली और कुत्ते दिखा रहा तो कोई फिल्मों में प्यार की दीवानगी । जब ऐसे कार्यक्रमों को न्यूज चैनलों पर दिखाया जाएगा तो सोचिए कि लोग इन्हें कितनी गम्भीरता से देखेंगे या लोगों पर कितना असर रहेगा। जब न्यूज चैनल कहलाने वाले राजू श्रीवास्तव,शकील को दिखाते हैं तो उन पर दिखाई जाने वाली खबरों की गम्भीरता पर सन्देह पैदा कर देता है। जो घटना अनिल धीमान के साथ हुई जरुरी नहीं कि यह किसी दूसरे चैनल के रिपोर्टर के साथ भी हो। लेकिन इन चैनलों में काम करने वालों की अस्मिता पर चोट जरुर है। आज अपने संस्थान में बात-चीत के दौरान इसी मुद्दे पर मेरे एक वरिष्ट सहकर्मी ने कहा कि आज पत्रकारिता नहीं चित्रकारिता हो रही है। खबरों को ग्राफिक्स की बलि चढ़ाया जा रहा है। यही कारण है कि खबरें अपने दर्शकों से निकटता खो बैठती है और प्रभाव भी। जबकि दूसरे सहकर्मी का मानना था कि यही होगा जब तक कि हमारे बीच के लोग सत्ता के चाटुकारिता करते रहेंगे। भारतीय पत्रकारिता के मूल्यों में गिरावट का दौर चिन्ताजनक है। आगे के हालात जो भी बने लेकिन पत्रकारिता में आज का दौर एक अंधी गली की तरह है.... जहां की नमी और गन्दगी अब अस्मिता के अस्तित्व पर बन आई है.........

5 टिप्‍पणियां:

सतीश पंचम ने कहा…

दुखद एंव शर्मनाक।

Unknown ने कहा…

sahee kaha patrkarita nahi chetrkarita hai ye.

बेनामी ने कहा…

साथी,
आप के लेखन में दिनों दिन जो निखर आ रहा है उसके लिए बधाई.

purnima ने कहा…

hum sabhi is baat se waakif hai ki patrakarita ke star mein girawat aaye hai.lekin yah bhi to socho ki patrakarita ke is star ko giraya kisne hai? ab ise uthayega kaun?

shaayad, tumahare jaise patrakaar.

purnima ने कहा…

shaayad tumhare aur humare jaise patrakar.