ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
बुधवार, जुलाई 02, 2008
धर्म के मायने बदल गए हैं क्या....
इन्सानियत की धर्म के नाम पर बली चढ़ गई। जम्मू में आक्रोशित धर्मोन्मादी भीड़ ने जिस तरह से एक निहत्थे पुलिस वाले की पिटाई की,उससे भीड़ की कुण्ठा साफ तौर से झलक रही थी। यह प्रश्न पैदा करता कि धर्म किस लिए और किसके लिए...... । यह तो रही भीड़ की मानसिकता लेकिन सियासत को कहां खड़ा करे यह समझ में नहीं आता। यह न तो आम आदमी की रह गई और न विकास की। अब भावनाओं के बल पर सत्ता का स्वाद चखते-चखते जनता की जिन्दगी से खेलने लगी है। भारत की पंथ निरपेक्षता अब संविधान की शब्दावली बन कर रह गई है। यह शब्द न केवल भ्रम पैदा कर रहा है,बल्कि संविधान के माखौल उड़ाने पर तुला हुआ है। स्व.प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कारनामों में 42 वें संविधान संशोधन को काफी सम्मान दिया जाता है। धर्म निरपेक्षता शब्द भी इसी परिवर्तन के तहत आया। क्यों कि भारत के मूल संविधान में यह शब्द नहीं रखा गया था । कारण कि संविधान निर्माताओं को भारत की धर्म निरपेक्षता पर कोई सन्देह नहीं था। सन्देह तो इन्दिरा जी को हुआ । तभी तो भारतीय संविधान को पंथनिरपेक्ष,समाजवादी और अखण्ड बनाने का प्रयास कर डाला। इसी के बाद से भारत को कई मुद्दों जैसे कृषि,अर्थव्यवस्था,उग्रवाद और सांप्रदायिकता से संघर्ष करना पड़ा। यह तो इतिहास का परिहास था जो हमारे लिए नासूर बन गया। सांप्रदायिकता का परिणाम कभी बाबरी,तो कभी गोधरा और गोधरा के बाद हुए दंगे के रूप में सामने आते रहे हैं। अभी श्राइन बोर्ड के मसले को इसी रास्ते पर घसीट लाने की सियासत हो रही है। पीडीपी समर्थन वापस ले लिया तो जम्मू-कश्मीर सरकार ने श्राइन बोर्ड को दी गई जमीन। अब बात समझ से परे है कि भाजपा किस बात को लेकर उतावली हो रही है...क्या मंहगाई जैस मुद्दे जनता के सामने नहीं हैं....अगर यह धर्म लोगों के पेट भरता है तो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में 9 आदिवासियों की मौत भूख से क्यों हो गई...इन्हें भी जीने का अधिकार था...लेकिन इनको लेकर सियासत ही हुई और न ही धार्मिक आकाओं की बयानबाजी। हां,राम को बीच मजधार में छोड़ चुकी भाजपा इस बार शिव के बल पर राजनीतिक जमीन की तलाश कर रही है।यही तो अवसरवादिता की राजनीति है। तोगड़िया तो अमरनाथ यात्रा को रुकने नहीं देने की गारन्टी ले रहे हैं भले ही लोगों की जिन्दगी थम जाए। तो मोदी भी मुसलमान समुदाय को नसीहत देते नजर आए। राजनीतिक जमीन की तलाश में कितनों को जमींनदोस किया जाएगा.....और कब तक.....यह तो....हमें ही तय करना पड़ेगा......
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3 टिप्पणियां:
बंधु, यह भी तो एक मुद्दा है.
"यह तो....हमें ही तय करना पड़ेगा", तो तय करिए न, किसने मना किया है?अरे भाई कोई तो तय करे. कुछ लोगों ने धर्म का ग़लत मतलब लगाया, दूसरों को बहकाया, बस सब शुरू हो गए धर्म को गलियाँ देने, और वह भी एक धर्म विशेष को. सारे धर्म ठीक हैं, बस एक ही धर्म ग़लत है. सब उसी के पीछे पड़े हैं. कुछ भी कह दो, कुछ भी लिख दो, कुछ भी तस्वीर बना दो, सब फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन है. हिंदू सिर्फ़ गाली खाएं और अदालतें कहें कि तुम्हें बुरा मानने का भी अधिकार नहीं है. कभी लगता है शायद बाल ठाकरे ही सही हैं.
क्या आपको बाल ठाकरे जैसे ठेकेदारों की ज़रूरत है सुरेश जी ?.. या फिर आपके धर्म को ?..समझ में नहीं आता कि धर्म के नाम पर मर-कट कर हम क्या उखाड़ लेंगे.. और जो मर-खप गये उन्होने क्या उखाड़ लिया..हम यमुना साफ करने नहीं जा सकते.. लेकिन धर्म के नाम पर उसमें कूड़ा ज़रूर डाल सकते हैं..अगर अयोध्या में मंदिर-मस्जिद (जो भी बने बला से)बन भी जाए तो हम क्या पा जाएंगे.. जेहाद जैसे शब्द को अपने लिए इस्तेमाल करने वाले लोग कितने शांत हैं पूछ सकते हैं उनसे..जिन दो जून की रोटी का जुगाड़ करने वाले लोगों को धर्म के लिए यूज़ किय़ा जा रहा है क्या कभी किसी ने उन्हें दिन में तीसरी बार का निवाला पाने की तरक़ीब सुझायी ? सच कहूं धर्म के लिए आपकी ऐसी विह्वलता मन को दुखी कर गई...
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