ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
सोमवार, जून 30, 2008
खबर क्या है .....
शायद आज एक नए मायने में पता चला...कि जब तक पुलिस की बाईट न हो किसी बात को खबर नहीं कह सकते। जब कि वह बात न केवल कानून-व्यवस्था से बल्कि मानव दुर्व्यापार से भी जुड़ती है। एक 14 साल की लड़की को उसकी पड़ोसन आगरा ले जाकर बेंच देती है। अगर यह बात पुलिस से पूछा जाए तो वह क्या जबाब देगी कि हम कोशिश कर रहे हैं।पुलिस के इसी तरह से कोशिश करने का परिणाम है कि देश की राजधानी पूरी तरह से क्राइम के गिरफ्त में है। दिनदहाड़े घरों में और सड़कों पर लूट को अंजाम दिया जा रहा है तो शाम के सात बजे से ही शहर महिलाओं के लिए खतरनाक हो उठता है... तथ्य यह भी है कि दिल्ली की पुलिस भारत में सबसे आधुनिक पुलिस है। आखिर यह आधुनिकता किस काम की। पुलिस को केवल इनकाउन्टर के सिलसिले में ही आधुनिक कहा जाए तो ज्यादा बेहतर होगा । खबर होने के लिए उसे हाई प्रोफाइल होने के साथ साथ पुलिस का सर्टिफिकेट होना जरूरी है। नही तो वह टी वी जैसे मंहगे माध्यम मे नही चल सकती है । चैनल की इज्ज़त को खतरा हो जाएगा क्यों कि इसे देखने वाला वर्ग उचे रसूख वाला और संपन्न तबके का जो है ।
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1 टिप्पणी:
Don't take it in this way. It just balances the news else somebody may say that it is a one-sided story.
It also fixes responsibility on the cops and the fact that you are giving them an option to explain them. It's because of this reason that there is a difference between 'charges' and a story. After all, journalit shouldn't become a complete activist.
Let the police deny it. Who cares for them? If the story is true, an attempt to get a sentence of byte won't be tough for a journalist.
If cops refuse to give byte, then one can say that they refused to speak on the matter.
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