ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

गुरुवार, जून 05, 2008

वेलफेयर स्टेट से कार्पोरेट स्टेट की तरफ ......

अब हमारी सरकार व्यापक जनता के हित को साधने के बजाय कुछ मुट्ठी भर लोगों के हित मे काम करने केमन बना चुकी है ....पेट्रोल और कुकिंग गैस के बडे दामइसके ताजे उदाहरण हैं। इन
दामों के बढाये जाने से पहले प्रधान मंत्री साफ कर चुके थे कि सरकार अब ज्यादा दिनों तक सब्सिडी का बोझ नही उठा सकती .....यानि उन गरीबों के हित मे कोई सहूलियत नही मुहैया करा सकती है ...माना कि टेल के दाम बडे हैं लेकिन यह भी तो हो सकता था कि सरकार टैक्स को घटा देती ...ताकि बढे दामों का बोझ जनता पर नही पड़ता ........साथ ही टैक्स कि कमी को इनकम टैक्स किम उगाही को बेहतर बना पुरी कर ली जाती । इन बढे दामों का असर महगाई कि मर झेल रही जनता पर सीधे पडेगा ...और पहले से हल्की और पतली हुई रोटी -दालके और हल्के होने कि पुरी सम्भावना है
.......लेकिन इस बात से सरकारों पर कोई फर्क नही पड़ता है......क्योंकि उन्हें देश कि जनता का दर्द aunkdon से जो दिखाई देता है..................

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

kya welfare ki baat ki apne ye saale wellfare ke mami krne per tule hai.