ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
रविवार, जून 01, 2008
राज कपूर से मैं.....
राज कपूर की एक ही फ़िल्म जो शायद आज भी मुझे याद है .....राम तेरी गंगा मैली ....सामाजिक समस्यायों पर उगली उठाने का बेहतरीन प्रयास मानता हूँ। आज के दौर मे ऐसी फिल्मों की कमी सी हो गयी है .....बनाने वालों का दोष भी नही है अगर ऐसा प्रयास भी होता है तो दर्शक नही मिलते । दर्शकों की कमी क्यों है एक ऐसा प्रहना है जिसका जबाब पाना आसान नहीं । भारतीय दर्शकों को समझ मे नही आता की समस्याये...उनके बीच हैं और समाधान भी उन्हें निकलना होगा। चेतना परक फिल्मों की सफलता लोगों के जीवन को सुधरती है।
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1 टिप्पणी:
दोस्त ये वो दौर था जब फिल्में समाज का आईना हुआ करती थीं...तब राजकपूर जैसे शोमैन भी अगर कुछ नया करते थे तो उनकी सोच सामाजिक परिकल्पना के इर्द-गिर्द ही होती थी...आज तो समाज फिल्मों का आईना बनता जा रहा है... हां तुम्हारी पसंद और नज़रिये की भी दाद देता हूं... क्योंकि ज़्यादातर लोग इस फिल्म को मंदाकिनी के लगभग नग्न सीन के लिए जानते हैं...
आपका
गौरव दोस्त
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