ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
गुरुवार, जनवरी 24, 2008
रोटी के लिए रोता बच्चा
मुनिरका और आई आई टी गेट के बीच सड़को के किनारे बसी सैकडों झुग्ग्यों में रहने वाले परिवारों के बच्चे सुबह शाम रेड लाइट पर रुकने वाली गाड़ियों के शीशे इस लिए पोछ्ते हैं क्योकि उन्हें नसीब नही है दो जून की रोटी ! आखिर इन्हें इस बचपन मे क्यों काम करना पड़ रहा है ?क्या इनके बचपन की आशाएँ मर गयी हैं या सपना देखने का हक ही नहीं है ! सोचना होगा कि व्यवस्था आखिर किस के और किनके लिए है? देश के २० प्रतिशत धनिकों के लिए सुरक्षा है स्वास्थ्य सुबिधा है ! शीशे को पोछने के बाद जब वे पैसे मांगते है तो लोग उन्हें हिकारत कि निगाह से देखते है कि जैसे उनके जीवन भर की कमाई मांग ली हो ! तो वह कि आपको कैसे मिली और उसे गाड़ी क्यों नही मिली! क्यों कि तुम्हरे पास संसाधन था पूंजी थी और उसके पास पेट भरने के लिए खाना नहीं!
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