ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)

बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

पुलिस-माफिया के बीच खटता इलाहाबादी क्राइम रिपोर्टर

एक बार पढ़कर अपनी सहमती/असहमति/सुझाव दें.
साभार-जेयूसीएस
इलाहाबाद के क्राइम रिपोर्टरों की आजकल चांदी है। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव और दस्तक की संपादक सीमा आजाद को कथित नक्सली बताकर पकड़े जाने के बाद इन क्राइम रिपोर्टरों में सनसनी फैलाने की कुकुरदौड़ मच गयी है। जिसमें सबसे आगे सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर आशुतोष तिवारी हैं। जो जासूसी उपान्यासों के तर्ज पर खबरें परोस रहे हैं। ये वही क्राइम रिपोर्टर हैं जो पिछले साल ऐसी ही एक खबर जिसमें उन्होंने इलाहाबाद के हंडिया तहसील के धोबहा गांव की एक मस्जिद से एक 47 और कई बोरे विस्फोटक बरामद होने की फर्जी खबर लिख कर अपनी काफी थुक्का फजीहत करवा चुके हैं। बहरहाल हम यहां सीमा आजाद और माओवाद पर उनके द्वारा प्रदर्शित ‘पांडित्य’ पर बात करेंगे।
14 फरवरी 2010 के दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर छपे ‘माओवादियों की बंदूक, बाबू का निशाना’ में उन्होंने ‘रहस्योद्घाटन’ किया कि बाबू उर्फ अर्ताउरहमान जो आईएसआई का एजेंट है साथ ही बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का साला है और भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में आरोपित है, अब माओवादियों से हाथ मिला चुका है। तिवारी जी के मुताबिक वो पिछले तीन महीने से माओवादियों के साथ काम कर रहा है और उसके निशाने पर यमुना पार के युवा हैं।
तिवारी जी की इस खबर पर टिप्पणी से पहले यह जान लेना जरुरी होगा कि पिछले दिनों नक्सलवाद और माओवाद की समस्या पर संसद में रिपोर्ट रखते हुए गृह मंत्री ने साफ कहा था कि "माओवादियों का आईएसआई या पाकिस्तान से संबंध जोड़ने का कोई तथ्य नहीं मिला है और न ही माओवादियों के पास से चीन निर्मित हथियार ही मिले हैं।" रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि इस तरह की खबरें जिनमें माओवादियों को पाकिस्तान या चीन से जोड़ा जाता है मीडिया की अपनी उपज है।
समझा जा सकता है कि आशुतोष तिवारी जैसे लोग जो सरकारी रिपोर्ट को ही स्रोत और पुलिसिया केस डायरी की नकल को पत्रकारिता समझते हैं उनकी यह रिपोर्ट खुद सरकारी स्टैंड के खिलाफ तो है ही गृह मंत्रालय के मुताबिक उनकी खबरें ‘मनगढ़ंत’ भी हैं।
अब आते हैं ‘मुख्तार कनेक्शन पर’ सर्वविदित है कि भाजपा विधायक कृष्णा नंद राय पूर्वांचल के दुर्दांत माफिया थे, जिनका दबदबा गाजीपुर से सटे बिहार के जिलों में भी था। और खास तौर से बच्चों के अपहरण में जब-तब उनका नाम उछलता रहता था। मुख्तार अंसारी माफिया गिरोह द्वारा दिन दहाड़े की गयी कृष्णानंद राय की हत्या दो माफियाओं द्वारा वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम था जिसे भाजपा और भगवा मानसिकता के पत्रकारों ने सांप्रदायिक रंग देने की खूब कोशिश भी की थी। जिसके तहत मुख्तार अंसारी के तार पाकिस्तान और आईएसआई से जोड़े जाने लगे लेकिन भगवा पत्रकारों की यह साजिश इसलिए नाकाम हो गयी कि कृष्णानंद राय की हत्या मुन्ना बजरंगी नाम के हिंदू अपराधी ने मुख्तार के कहने पर की थी। यह नाकामी एक कुंठा बन गयी बावजूद इसके आशुतोष तिवारी जैसे लोग अभी भी इस अभियान में लगे हैं और तरह-तरह से कुठा का प्रदर्शन कर रहे हैं। बाबू उर्फ अर्ताउरहमान जो तिवारी जी के अनुसार मुख्तार का साला और आईएसआई का एजेंट है और जिसने पूर्वांचल में माओवादी गतिविधियों का उन्हीं के शब्दों में ‘ठेका’ ले चुका है, का नाम अचानक उभरना इसी अभियान और कुंठा का हिस्सा है।
आशुतोष जी की जानकारी के लिए पहले तो यह बताना जरुरी है कि आईएसआई समर्थित आतंकवाद भारत में इस्लाम का शासन स्थापित करना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे संघ परिवार धर्म निरपेक्ष भारत को हिंदू राष्ट् में तब्दील कर देना चाहता है। जबकि माओवादी अपनी अराजकता और उग्रवादी गतिविधियों से भारत में माओवादी शासन लाना चाहते हैं। अब आशुतोष जी जानें कि माओवाद एक भौतिकवादी दर्शन है और उसके मानने वाले नास्तिक होते हैं। इसी विचारधारा के चलते चीन ने जहां अनगिनत पैगोडा-बौद्ध मंदिर और उइगर के इस्लामी चरम पंथियों और उनके द्वारा संचालित संदिग्ध मदरसों और मस्जिदों को नेस्तनाबूद किया है। अब ऐसे नास्तिक माओवादियों का धर्म तंत्र स्थापित करने के लिए लड़ने वालों से कोई भी समझदार और गंभीर आदमी से संबंध जोड़ने की मूर्खता नहीं कर सकता। हां, पांचजन्य या ‘बिना हड्डी का कंकाल’ जैसा जासूसी उपन्यास पढ़ने वाला ऐसा जरुर कर सकता है।
दरअसल तिवारी जी बाबू उर्फ अर्ताउरहमान को पूर्वांचल में माओवादी गतिविधियों का ‘ठेका’ लेने की खबर लिख कर पूर्वांचल में सक्रिय मुख्तार गैंग को इलाहाबाद के कथित माओवाद से जोड़कर एक मूर्खतापूर्ण लेकिन खतरनाक ‘हरा प्लस लाल’ कोरीडोर बना रहे हैं। लेकिन चूंकि वे मूल रुप से क्राइम रिपोर्टर हैं इसलिए ऐसी कल्पना लिखते समय उनका शब्द कोष आड़े आ जाता है और उन्हें ‘ठेका’ जैसे शब्द से काम चलाना पड़ता है। दरअसल तिवारी जी पर किसी भी ऐसी घटना को ‘यमुना पार’ से जोड़ने का पुलिसिया दबाव है। इसीलिए उन्होंने लिखा कि ‘बाबू की नजर यमुना पार के युवकों पर है।’ ऐसा इसलिए कि यमुना पार क्षेत्र में अखिल भारतीय किसान मजदूर संगठन जो संसदीय व्यवस्था में यकीन रखने वाली भाकपा माले न्यूडेमोक्रेसी का किसान संगठन है के नेतृत्व में निषाद जाति के लोग बालू माफिया, अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष और बसपा सांसद कपिल मुनि करवरिया के खिलाफ जुझारु आंदोलन चला रहे हैं। इसीलिए किसी भी कथित और काल्पनिक माओवादी आंदोलन को वह यमुना पार से जोड़कर उस आंदोलन को जिसे वे और अन्य पत्रकार भी ‘लाल सलाम’ से संबोधित करते हैं, बदनाम करने के लिए ओवर टाइम में खट रहे हैं।
बहराहाल इस खबर का रोचक तथ्य वह वाक्य है जिसमें वे लिखते हैं ‘बाबू ने नेपाल में सरकार के तख्ता पलट में भी अहम भूमिका निभाई थी।’ यहां गौरतलब है कि माओवादियों की ही सरकार का तख्ता पलट हुआ था। ऐसे में इसे हास्यास्पद ही कहा जाएगा कि माओवादियों की सरकार गिराने वाला ही माओवादियों का सरगना भी हो। बहरहाल आशुतोष जी का यह जासूसी उपन्यास अंश यहीं नहीं रुकता और पंद्रह फरवरी यानी अगले दिन प्रथम पृष्ठ पर छपे ‘लखनऊ जेल पर माओवादी हमले का प्लान’ (आश्चर्यजनक है कि प्रदेश भर के किसी भी पत्रकार को इस हमले की साजिश की जानकारी नहीं हुयी और आशुतोष जी ने इलाहाबाद डेट लाइन से लखनऊ में होने वाले इस काल्पनिक हमले की खबर लिख दी।) में लिखा कि कानपुर, लखनऊ और इलाहाबाद से माओवादियों की गिरफ्तारी एफबीआई की सहायता से हुयी। समझा जा सकता है कि जहां दूसरे पत्रकारों की कल्पनाएं गिरफ्तारी के पीछे सर्विलांस और पुलिस की सक्रियता को ही आधार बना रहे थे वहीं तिवारी जी की कल्पना सात समंदर पार अमेरिका स्थित एफबीआई तक पहुंच गयी। खैर जासूसी उपान्यास की तर्ज पर खबर लिखने वाले को अगर सांसद और पुलिस दोनों के दबाव में खटना पड़े तो ऐसी ही खबरें जन्म लेंगी।
एक बात और ये वही पत्रकार हैं जिन्होंने सीमा आजाद की गिरफ्तारी के दूसरे दिन लिख दिया ‘विनायक सेन और प्रशांत हाल्दर से मिल चुकी है सीमा।’ अब तिवारी जी को कौन बताया कि विनायक सेन अब जेल में नहीं हैं, बाहर हैं और उनसे कोई मिल सकता है और प्रशांत हाल्दर बंगाल के जाने-माने लेखक हैं जो तमाम पत्र पत्रिकाओं में लिखते हैं।
बहरहाल जेयूसीएस मानता है कि एक ऐसे समय में लेखन का क्रेज कम हो रहा हो, जासूसी उपान्यास जैसा लेखन भी प्रोत्साहन का हामी है। सवाल सिर्फ आशुतोष तिवारी पर से सांसद कपिलमुनि करवरिया और पुलिस के उस दबाव को खत्म करने का है। जिससे उनका मानसिक संतुलन कम पड़ गया है। हम उनके इस दबाव से उबरने की कामना करते हैं और हालांकि आशुतोष बुद्विजीवी की श्रेणी में नहीं आते लेकिन हम उन्हें किसन पटनायक लिखित ‘पुस्तक विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ का ‘चीन और भारतीय बुद्विजीवी’ पढ़ने का आग्रह करते हैं। उम्मीद है असर होगा अब ये असर कितना होता है इसका मूल्यांकन जेयूसीएस का मीडिया मानिटरिंग सेल उनकी आने वाली रिपोर्टों में करेगा।
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (जेयूसीएस) राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा राष्ट्रहित में जारी-

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