मेरा लिखा पूरी तरह से मेरा है । बस इतना कहना चाहूँगा कि कुछ लोग यह मानते हैं कि कोई नई बात एक नया आदमी नहीं सोच सकता है । जैसा कि लोग यह भी कहते हैं कि कल की मुर्गी और वृदाबन की बातें । हाँ यह एक इत्तेफाक है कि मेरा लिखा उस दिन के एक दैनिक अख़बार के सम्पादकीय लेख से मिलता जुलता है । अगर गौर करे तो पाएंगे कि उसमे एक पत्रकार के नाम का जिक्र भी किया है जिनसे कुछ दिन पहले मेरी बात भी इसी मुद्दे को लेकर हुई थी । बहस यह नही कि लोग मुझ पर आरोप लगा रहे हैं किमैं एक व्यक्ति के व्यक्तित्वा से प्रभावित हो गया हूँ बल्कि यह कि जो कहा जा रहा है वह सही नही है । यानि टी बी पत्रकारिता अपने शुरुआती दावों के साथ छल नहीं कर रही है । मान भी लूँ कि मैं प्रभावित था तो यह भी तो दो समान सोच वालों के बीच ही संभव ही । जब एक व्यक्ति अपनी ऐसी ही सोच के साथ पत्रकारिता के आकाओं को उपदेश दे रहा हो तो एक नवसिखिया पत्रकार होने के नाते उस लिखे को अपने तर्कों पर क्यों न कसा जाए । पढ़ने के बाद इस नवसिखिए के लिए कुछ टिप्पणी अवश्य करें......
ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
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4 टिप्पणियां:
आपने अपना पक्ष रख लिया. आगे इत्मिनान से लिखें, शुभकामनाऐं.
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। तर्क करने का रास्ता बहुत संकरा है; कुतर्क्करने के बहुत से रास्ते हैं जिन्हें अंग्रेजी में "लाजिकल फ़ेलासी" (तर्क दोष) के नाम से जाना जाता है। किसी के विचार को तर्क पूर्वक काटने के बजाय व्यक्तिगत हमला करना इसमें से एक है।
अच्छा हुआ आपने अपनी बात रखी, मुझे भी कुछ कहने का मौका मिल गया।
अनुनाद सिंह
किसी के विचारों से प्रभावित होने की आपकी आज़ादी का मैं सम्मान करता हूँ.
भाई इ बेनामी कइसे आ गया. इ विचार तो हमारा है.
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