ॠषि कुमार सिंह॥ भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली। "घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है। बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।"(अदम गोंडवी)
शुक्रवार, जून 27, 2008
सीधी सी बात न मिर्च मसाला ......
हिन्दी में हो रही टी बी पत्रकारिता का इस कदर सरोकारों से मुक्त होना दरअसल उसमे कम करने वाली रूलिंग लेअर के दिवालियेपनकी निशानी है । यह रूलिंग लेअर सभी हिन्दी चैनलों मे मौजूद है। इस रूलिंग लेअर में शामिल लोगों मे अधिकांश ने अपना कैरियर किसी न किसी हिन्दी अख़बार से शुरू किया था । और आज इस चमक धमक वाले खर्चीले माध्यम को संचालित कररहे हैं। अक्सर सोचता हूँ कि क्या इनके अन्दर का इथिक्स पूरी तरह मर चुका है । अगर नहीं मरा है तो यहसोचे बगैर कि जो दिखाने जा रहे हैं उसका इस समाज पर क्या प्रभाव आयेगा ,कोई स्टोरी कैसे चला देते हैं । दरअसल ये लोग अपने को क्रियेटिव मानते है लेकिन पैसों के संदर्भों मे ही। अगर ऐसा न होता तो पिटी लीक को छोड़ने की चुनौती क्यों नही स्वीकार कर लेते । क्यों सारेहिन्दी चैनल एक दूसरे की नक़ल करते नजर आते हैं। कारण कि इसी लीक पर चलते हुए अन्य चैनल टी आर पी की कमाई पा रहे हैं। जिससे न केवल मालिक को खुश किया जा सकता है बल्कि उसकी बडोत्तरी मे ही अपने चमकते तक़दीर की आशा की जा सकती है। आखिर सनसनी खेज ,भुत ,प्रेत और बाघ भालू वाली खबरें टी आर पी क्यों पा रही हैं । वरिष्ठ पत्रकार नवीन जी का मानना है कि "हिन्दी का दर्शक अभी इन सब चीजों से चौक रहा है और चौक रहा है तो वह देख भी रहा है। इसी देखने के क्रम में टी आर पी का मीटर भी चढ़ता है।और मीडिया मे काम कर रही रूलिंग लेअर समझती हैं कि वह पसंद कर रहा है। यही कारण है कि लकीर नही छोड़ पा रहे हैं। " यह बात अपनी जगह सही हो सकती है लेकिन हिन्दी के दर्शकों के सामने कुआँ और खाई की समस्या है। वह हिन्दी चैनलों मे विकल्प की तलाश नही कर रहा है ऐसा नही है। बल्कि उसके लिए सारेहिन्दी चैनल कमोबेश आगे पीछे खडे नजर आते हैं। आरोप तो यह भी आता है की हिन्दी में सिरिअस दर्शक नही है ,लेकिन सचाई तो यह भी है किहिन्दी मे सिरिअस पत्रकारिता ही नही हो रही है। यह काम तो अंग्रेजी पत्रकारिता के जिम्मे छोड़ दिया गया है।
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2 टिप्पणियां:
Aapka ye lekh kafikuch Dainik BHashkar me Chhape Punya Prashun ji ke lekh se prabhavit hai... Bandhu vo paid editorial hai... aap nahi.. Dusaro se jaldi prabhavit na hokar dusaro ko svaym se prabhavit karane ka prayas kare... aapke is lekh se mai dukhi hu..
भाई माधव जी!
जब विचारों की बात होती है तो यह जरुरी नहीं के सभी के विचार अलग अलग ही हों. ये एक जैसे भी हो सकते हैं. और जहाँ तक रही अलग दिखने की तो, जरुरी नहीं की यह मध्यवर्गीय मूल्य हर किसी में हों. अपना 'महान' मध्यवर्ग ही हमेशा दूसरों से अलग दिखने की कोशिश में लगा रहता है और चलता उसी राह पर है जिसके प्रवर्तक शिवखेडा जी महाराज जैसे लोग होते हैं. अपने को सबसे अलग दिखाने की यह परम्परा ही मध्यवर्ग को एक गर्त की ओर धकेल रही है. अच्छा होगा की आप इससे बचे रहें. हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
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